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उऊ- कुल-नीवी (2-38) उप्रो-ग्रोहयो अभिभूतः-पराजितः (1-158), कोल्हुप्रो-ईख पेरने का कोल्हू
(2-65 ', झायो-मशक (3-54), झेडप्रो-कन्दुक (3-59), पउग्रो-दिनम्
(6-5) । का- जूनप्रो-चातक (3-47), गिहूप्र-सुरतम् (4-26), पू-दधि (6-56),
मूप्रलो-मूत्रल्लो मूक (6-137) । प्रा-जपा-यूक (1-139). पूग्रा-पिशाचगृहीता (6-54), कइ- सूइप्रो-चाण्डाल (8-39) । कई- सूई मजरी (8-41)। को- चूनो-स्तनाग्र (3-18), तूप्रो-इक्षुकर्मकर (5-16), तुडूमो-जीणंघट'
(5-15), दो हूा-शव (5-49), पुरुहूरो उल्लू (6-55), फूअो-लोहकारः
(6-85) एम- अाहेअनो-भ्रान्त (1-21), मेप्रज्ज-धान्यम् (6-38), मेरो असहन
(6-38) वेअल्लं-मृदु (6-75) । एमा-केया-रज्जु (2-44), केआरबागो-पलाश (2-45), खेालू-असह्य (2-77)
पेसाल-प्रमाणम् (6-57), वेनारिया-केश (6-95) । एइ- प्रारेइन मुकुलितम् (1-77), पावरेइया-करिका (1-71) उवएइअा-मद्य
परिवेषण भाण्डम् (1-118) विभेइम -सूच्याविद्धम् (7-67) । एउ- णेउड्डो-सद्भाव' (4-44), एऊ- केऊ कन्दः (2-44), एप्रो- छेनो-अन्त (3-38), साहिविच्छेप्रो-जघनम् (4-24), परेप्रो-पिशाचः
(6-12), सेप्रो-गणपति (8-42) । प्रोप-प्रोन वार्ता (1-149), प्रोग्रग्गिन-अभिभूतम् (1-72), प्रोप्रग्विन-घ्रातम्
(1-162) श्रीन को-गजितम् (1-154), प्रोअल्लो-पर्यस्तः-(1-165) श्रीपा-प्रोग्रारो-ग्रामाधीश. (1-166), प्रोप्राली-खड्गदोष' (1-151), प्रोग्रालो.
अल्प श्रोत • (1-151), प्रोग्रावलो-बालातप (1-161)। सोइ अोइत्त -परिधानम् (1-155) पोइल्ल-प्रारूढम् (1-158), कोइला-काष्टा.
गार. (2-49), जोइप्रो-खद्योत (3-50) ।