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[ 219 प्रऊ- पऊ ढ गृहम् (6-4), मऊ-पर्वतः (6-113), वऊ-लावण्यम् (8-30)।
कुल इतने ही शब्द है। पए- अवएइग्रा-मद्य परिवेपणभाण्डम् (1-118) पएरो-गुफा का द्वार (6-67),
पएमो-पडोसी (6-3), कुल तीन ही शब्द हैं । अनी- अज्जयो-गुरेटकतृणम् (1-54), अज्झनो-पडीसी (1-17), अण्हेअनो
भ्रान्त (1-21), अबडो-घास का घोख (1-20) इन्दड्ढलनो-चन्द्रो
त्यापनम् (1-82) आदि । यह स्वर सयोग प्रचुर मात्रा मे है। प्राग्र-प्रायड्डिय-परवशचलितम् (1-69), पाल्ली झाट भेद (1-61), आपल्लो
रोग 11-75), प्रोग्राअगे अस्तसमय (1-162) माअलिबा-मातृष्वसा
(6-131 ) आदि। पापा-यह स्वर-सयोग देशीनाममाला के किसी भी शब्द मे नही है । आइ- प्राइप्पण-पिष्टम् ( .78), प्राइसण-उज्झत-छोडा हुआ (1-71), करा
इणी-शात्मलितरु (2-18), पत्तपसाइना-पुलिन्द के शिर पर रखा गया
दोना (6-2), विग्गाइया-जोडे मे रहने वाला कीडा (6-93) आदि । प्राई- जाई-सुरा (1-45), विग्गाई-जोडे मे रहने वाला कीडा (6-93), साई-केसर
(8 22), इ दगाई-जोडे मे रहने वाला कीडा (1-81) इत्यादि । प्राउ-पाउरो-सग्राम. (1-65), पाउल- अरण्यम् (1-62), आउस-चम्
(1-65), पाउन -हियम् (6-38), पाउग्गो-सम्यः (6-41) इत्यादि । पाऊ- पाऊ-सलिलम (1-61), पाऊडिअ - तपणः (1-68), पाऊर-अतिशयम्
( 1-76),जाजरी-सुरा (1-45), पाऊ-विभक्त (6-75) इत्यादि । श्राए- इस स्वर-सयोग का सर्वथा अभाव है । उदाहरण की गाथानो मे स्त्री शब्दो
मे विभक्ति के प्रत्यय के रूप मे इसका व्यवहार हुआ है-जैसे-अलिणाएहि,
विप्रोअपराए प्रादि । प्रारो- उन्भारो-शान्तः (1-96), प्रोग्रामो-ग्रामाधीश (1-166) छात्रओ-बुभुक्षित
(3-33), जहाजाओ-जड (341), गाओ-गर्विष्ठ (4-23), पलामो
चौरः (6-8) इत्यादि । इअ- अविन -उक्तम् (1-10), पारेइअ -मुकुलितम् (1-77), कइ कसई-निकर
(1-13), कइअ को (2-13), कासिम-सूक्ष्मवस्त्र (2-59) इत्यादि । इआ- पावरेइया-करिका (1-71) कसिश्रा-अरण्यचारीफलम् (2-6), कालिमा