________________
218 ] पदो मे हुआ है । देशीनाममाला की शब्दावली मे 'व श्रुनि' के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं
प्राणवो-स्वपच. (1-64), ह कुरुखो-अ जलिः (8-71)। देशीनाममाला के शब्दों मे 'व' ध्रुति की स्थिति इन्ही दो शब्दो मे, स्पष्टतया लिखित रूप मे प्राप्त होती है । अन्य शब्दो में स्थित होते हुए भी यह स्वरो 'अ', 'या' तथा 'ओ' के रूप मे लिखी गयी है । कुछ ऐसे शब्द उल्लेखनीय है
हुमो-जीर्णघट (4-11) थोप्रो-रजक. (5-32) पडोयो-वाल (6-9), परभानो-सुरतम् (6-27), पूमा-पिशाचगृहीता (6-54), भामो-ज्येष्ठ भगिनीपतिः (6-102) भपुप्रा-शिवा (6-101), भूमिषिमाग्री-नाल (6-107) ग्रादि अन्यानेक शब्दो के उच्चारण मे व श्रुति विद्यमान देखी जा सकती है पर लिपि मे इन्हें स्वरो के रूप मे ही लिखा गया है।
इस प्र र देशीनाममाला की शब्दावली सधि-विधान को तो प्रश्रय देती ही नहीं, य श्रुति श्रीर व अति भी प्राय तद्भव और कुछ ही देशी शब्दो मे मिलती है। इनमे सर्वत्र स्वरो की उबृतता ही प्रवान है । उद्धृतस्वरो के निम्नलिखित सयोग देशीनाममाला की शब्दावणी मे देखे जा सकते हैंअन-अ-विस्तारितम् (2-49), उअन -ऋजुकम् (1.88), दअच्छरो-नाम
वामी (5-36) टहरी-मुग (5-34), समग्र-शिला (8-46) । अप्रा-मग्राइ - शिरोमाला (6-115)-पूरे कोश मे यही एक उदाहरण है । अइ- अहण-गिन्तिटम् (1-10), अइरो-पायुक्त (1-16), अारजुवई-नववधू
(1-48) अहहारा विद्य त् (1-34), यह स्वर संयोग बहुतायत से मिलता है।
अई- प्रहरजुबई (1-148), क्रमई-अरण्यवारीफल (2.6) खडई-असतो (2 67),
रायगई-जलोका (एकघाम) (7-4}, वित्तई-गवित (7-91), मई-सुग (6-113) ई को 'इ' रूप में ह्रस्वकर देने की प्रवृत्ति के कारण 'अई' स्वर नयोग अधिकाण स्थलो पर 'अई' के रूप में पा गया है, जैसे गईमासय को गइमासत्र कर दिया गया है । दीर्घ को ह्रस्व करके बोलने की प्रवृत्ति, लोक
भाषाम्रो की बहुत प्राचीन प्रवृत्ति है । प्रट- गाउप-प्रधानम् (2-56), काउल-करीपम् (2-7), कटह-नित्यम् (2-5),
चदम चत्वरम् (3-2), उपकरी-कार्तिकेय (3-5), चउरचियो मातवाइन (3-7), पटन्य-प्रोधित्म (6-66) वाढहारी-सम्मानी (6-97)