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________________ [ 217 इन प्रकार का अतिविधान म भा. प्रा के लिए कोई नवीन वस्तु नही है । सस्कृत मे अकारान्त प्रथम बहुवचन के विसर्ग को स्वर अन्त स्थ और वर्णों के अन्तिम तीन वर्णों के परे होने पर य का आगम य श्रुति ही है । ऐसे स्थलो पर विसर्ग का प्रभाव हो जाता है और दोनो पदो के बीच मे य अति के रूप में आ जाता है । यह श्रुति विधान भी प्राय विकल्प से होता है । बोलने मे 'य' के न सुनायी पड़ने पर श्रुति विधान नही भी होता । उदाहरण के लिए देवा + इह को लिया जा सकता है । य ध्रुति का आगम होने पर यह देवायिहि तथा श्रति के न सुनायी पड़ने पर देवाइह रूपो में प्रयुक्त होता है । सस्कृत का 'इयड' आदेश भी य श्रुति ही है। संस्कृत के बाद प्राकृतो मे इस श्रुति का प्रयोग बहुतायत से होने लगा । अपभ्र श मे पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रो मे तथा जैन लेखको की भाषा मे य श्रुति की बहुलता देखी जा सकती है, इसके विपरीत पूर्वी क्षेत्र की भाषामो मे इसका प्रयोग अपेक्षाकृत न्यून है। देशीनाममाला की शब्दावली का सम्बन्ध भी अधिकाशत म. भा पा से है, अत इसमे भी य श्रुति-विधान की प्रवृत्ति स्पष्टतया लक्षित की जा सकती है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं - प्रत्ययारिया-सखी (1-16), अमयणिग्गमो चन्द्र. (1-15), आमलय -नपुरगृहम् (1-67), उवकय-सज्जित स उपकृत (1-119), मायन्दो-पाम्र (6-128) रयणिद्धय-कुमुद स रजनीध्वजम् (7-4) लयापुरिसो स. लतापुरुषो (7-201, वयाडो-शुक सस्कृत वाचाट (7-56) आदि । इ के बाद 'ए' स्वर के सयोग मे भी 'य' श्रुति सुनी जा सकती हैं । व श्रुति का प्रयोग भी सस्कृत काल से ही प्रचलित रहा है । संस्कृत मे 'उ' के स्थान पर 'उवड' श्रादेश व श्रुति ही है । प्राकृत और अपभ्र शकाल मे भी 'व' श्रुति का प्रयोग मिलता है, परन्तु यह य श्रति के प्रयोग की भांति व्यापक नही है । म मा प्रा मे कभी-कभी प्रोष्ठस्थानीय वर्णों की समीपता समीकरण या कभी-कभी असमीकरण मे भी 'व' श्रति के होने की पर्याप्त सम्भावना हैं। इसके 'प्रोकारान्त' शब्दो मे हल्की व श्रुति सर्वत्र सुनायी पडती है, परन्तु प्रायः इसे स्वर 'ओ' के रूप मे ही लिखा गया है । सम्पूर्णकोश मे 'प्रोकारान्त' शब्दो की भरमार है। इन शब्दो के बोलने मे निश्चित रूप से 'व' श्रुति का आगम हो जाता रहा होगा। कुछ शब्दो को व श्रुति सयुक्त कर, लिखा भी गया है, जैसे-अणुवो- बलात्कार (2-19)। परन्तु त्रिविक्रम ने इसे 'अणुओ' रूप मे ही दिया है । 'उ' के बाद 'नो' तथा 'आ' के बाद प्रो स्वर के उच्चारण मे हल्की 'व' श्रुति सुनी जा सकती है । यद्यपि इसे सर्वत्र 'ओ' रूप मे ही लिखा गया है । व श्रुति का स्पष्ट प्रयोग कही-कही 'अकारान्त'
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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