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________________ [ 199 हिन्दी म पारिजात' मे इमे 'देश्य' ही माना गया है। (147) मेलो-जनराहनि (सजा) दे ना मा. 6-138-हिन्दी तथा उसकी सनी बोगियो में 'मेलो' शब्द 'सगी-साधी' के अर्थ में प्रयुक्त होता है । हिन्दी का 'मेला' शब्द भी इनी का विकसित रुप माना जा सकता है । यद्यपि सस्कृत मे भी 'मेक शब्द पाया है फिर भी उसे प्रारुतो नी ही देन माना जाना चाहिए । (148) न्यानो---मन्यान: (मथानी) (मज्ञा) दे ना मा 7-3 ब्रजभाण में 'र', मपानी के अर्थ मे व्यवहन होना है 'फेन्त कर उलटी र न विलोवन हारि । बिहारी । नजगापा नूरणोप पृ० 1440 पर 'रई' को सस्कृत 'रय' शब्द से व्युत्पन्न माना गया है । पन्यात्मक विकास की दृष्टि से यह व्युत्पत्ति भले ही ठीक हो पर भाषागत शब्दो के विकास मिद्वान्तो तथा उनके प्रयोगगत वातावरण को ध्यान पे रमते हा शब्द को 'देय' ही माना जाना चाहिए। प्रत्येक पद का सबध मगर ने जोडने की मनोवृत्ति एक स्वस्थ मनोवृत्ति कदापि नही कही जा सकती। (149) रिगिन-भ्रमण (सना) दे ना मा -7-6-हिन्दी की 'रेगना' निया का सम्बन्ध इनसे जोड़ा जा सकता है। यह क्रियापद 'पेट के बल रगड कर चलने के अर्थ में हिन्दी की सभी बोलियो मे भी प्रचलित है। अवघी के कुछ क्षेत्रो मे यह 'मनुष्य के चलने' का भी वाचक है। ब्र० सू० को. प. 1482 पर इसे सस्कृत के 'रिस गरण पद से व्युत्पन्न किया गया है । स्वय 'रिङ्गण' भी 'रे' और 'गम्' दो घातुनो के मेन से बना है । यहा एक बात स्पष्ट रूप से कह देना उपयुक्त होगा। मामान्य जनजीवन में प्रचलित शब्दावली का अधिकाश भाग व्याकरण से व्युत्पन्न नही किया जा सकता । किसी भी शब्द की व्युत्पत्ति देने के पहले उस शब्द के प्रयोग से सम्बन्धित वातावरण को ध्यान में रखना अावश्यक होता है। प्रशिक्षित समाज व्याकरण एव माहित्य का क्रम परम्परा का अधिक अनुसरण न करता है। ऐसी स्थिति मे भाषा के सभी शब्दो को व्याकरण के बने बनाये ढाचे मे फिट करने का प्रयत्न सराहनीय नहीं कहा जा सकता। (150) रिद्ध -पक्व (विशेषण) दे ना मा 7-6--हिन्दी 'रीधना' क्रिया पकाने के अर्थ में प्रयुक्त होती है । इसका सम्बन्ध उपर्युक्त शब्द से ही होना चाहिए । सस्कृत 'ऋद्धि' (बटती) शब्द से इसकी व्युत्पत्ति सम्भव नही है । 1 वही, 618
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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