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(136) वइल्ल-- चलीवर्द : (संज्ञा) दे. ना मा 6-91-- हिन्दी 'बैल' प्रवधी 'यश्ल' प्रादि शब्द इसी के विकसित रूर होंगे। हिन्दी शब्दार्थ पारिजात (पृ 581) मे भी 'बल' शब्द को 'देश्य' ही माना गया है- सस्कृत 'वलीवर्द' से इसकी न्युत्तत्ति देना न तो व्याकरण सम्मत ही होगा और न पारम्परिक ही।
(137) बुलका- मुष्टि : (सशा) दे. ना. मा 6-94- हिन्दी तथा उसकी सभी वोलियो मे 'वूक' शब्द इमी भर्घ मे प्रचलित है- जैसे वूक भर दाना अर्थात् मुट्ठी भर दाना।
(138) बुलबुला-बदबुद (संज्ञा) दे. ना मा. 6-95-हिन्दी तथा उसकी सभी बोलियो मे 'बुल गुला' शब्द जलबुदवुद के अर्थ मे प्रयुक्त होता है । तेलगु मे भी बुलबुला' शब्द ही है। इस पद को भापा के ध्वन्यात्मक शब्दो की कोटि मे भी रखा जा सकता है।
(139 वेडो :-नो (सना) दे ना मा 6-95-हिन्दी का 'वेडा' शब्द इसी पा विभानित रूप है । परन्तु अर्थ विस्तार की प्रक्रिया में यह शब्द केवल 'नान' का पाचक न रहकर नावो के समूह का अर्थ देने लगा है।
(140) बोहारी-बउहारी-सम्मार्जनी (झाडू) दे ना भा.-6-97-हिन्दी मे 'वोहारी' शब्द ही प्रचलित है । 'बुहारना' क्रिया तथा 'बुहार' (झाड-बुहार) नाम पद का सम्बन्ध भी उपर्युक्त शब्द से ही जोडा जा सकता है।
(141) भल्लू-ऋक्ष (सज्ञा) दे. ना. मा 6-99-हिन्दी 'भालू' शब्द इसी से विकसित है। यद्यपि मस्कृत में 'भल्लूक' पद है, पर उसकी स्वय की ही स्थिति सदिग्ध है। 'भल्लक' शब्द जनता की सामान्य बोलचाल की भाषा से ग्रहण कर 'सस्कृत' (सस्कार किया गया,) शब्द प्रतीत होता है।
(142) मुरुकु डिनउद्ध लित (विशेषण) दे ना. पा. 6-106-अवधी मे 'भुरकुड' शब्द 'धुलधूसरित' होने के अर्थ मे ही प्रचलित है । यह विशेषण और क्रिया (भुरकु डना) दोनो ही रूपो मे व्यवहृत होता है ।
1. सग्रेजी मे भी Bubble शब्द मिलता है-'बुलबुला' शब्द से इसका पर्याप्त ध्वनि
साम्य है। 2 रोजी के Boat शब्द से इसकी तुलना की जा सकती है।