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196 ] 'फुप्फा' या 'फूफा' कहा जाता है । यह शब्द 'पुप्फा' के अधिक समीप है। इसका अर्थ मी अपने मूल से जुड़ा हुआ है।
(130) पूरी- तन्तुवायोपकरण (सज्ञा)- दे. ना. मा 6-6 'पूरी' शब्द ज्यो का त्यो जुलाहे के उपकरण के अर्थ मे ही प्रचलित है । इसका एक अन्य रूप 'पुल्ली' भी है । यह शब्द अंग्रेजी के 'गेटेलकाक' का समानार्थी है।
(131) पेल्लिय- पीडितम् (विणेपण) दे ना मा 6 57- हिन्दी की 'पलना' (बलात्कारेण त्रस्त करना) क्रिया इमी शब्द से विकसित मानी जा सकती है । यद्यपि सस्कृत मे भी 'पेलु' गती', क्रिया पद विद्यमान है फिर भी वहा उसका अर्थ 'चलना' है न कि बस्त करना । इसी प्रकार सस्कृत 'प्रेर' (प्र+ईर) का भी अर्थ 'चलना' है न कि त्रस्त करना ।
(132) पोट्ट - उदर (सना) दे ना मा 6-60 हिन्दी का 'पेट' शब्द इसी से सबद्ध है । अवधी के कुछ ग्रामीण क्षेत्रो मे 'पोटा' शब्द भी प्रचलित है । ब्रज मापा सूर कोप, पृ० 1115 पर 'पेट' शब्द की व्युत्पत्ति 'स० पेटथेला' शब्द से दी गई है जो स्वय मे ही अति हास्याम्पद है ।
(133) पोत्तयो- वृपण. (संज्ञा) दे ना. मा. 6-62-हिन्दी तथा उसकी सभी वोलियो मे मानव शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग (अण्डकोश के लिये 'पोत्ता' या 'फोता' शब्द का प्रयोग होता है । निश्चित ही यह शब्द 'पोत्तयो' का ही विकसित रूप है।
(134) फमरण- युक्तम् (विशेपण) दे ना मा 6-87- हिन्दी 'फसना' क्रिया पद इमसे विकमित माना जा सकता है। इसे सस्कृत 'पाश' शब्द से भी व्युत्पत किया जा सकता है- पाश फाँस 7 फंसना ।
(135) फोफा-- भीपयितु शब्द (सज्ञा) दे ना मा 6-86- हिन्दी के 'फोफों' तथा 'फू फू' जैसे ध्वन्यात्मक शब्द इसी से सम्बद्ध किये जा सकते हैं । 'फुक्कार' या 'फुफकारना' सभी इमी शब्द के विकसित रूप माने जा सक्ते हैं । देशी नाममाला की 'देश्य' शब्दावली में अनेको व्वन्यात्मक शब्द भी मकलित हैं। ऐसे शब्द तो निश्चित ही माहित्य को लोकजीवन की देन हैं । डा० पूर्ण सिंह ने तो हिन्दी की सारी 'ध्वन्यात्मक शब्दावली को देश्य' कोटि मे रखा है। 1. मिद्धार्गमदी 1-574 2 रापि अभिनदन ग्रय।