SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 194 ] ___(117) दुद्धिणिया- स्नेहस्यापनभाण्डम् (नेल का वर्तन) (सज्ञा) - दे ना मा 5-54 – अवधी का 'दुवही' शब्द इसने विकसित माना जा सकता है । यह जन्द अर्य की दृष्टि से (अप्रयोगत्वात्) देशज भले ही हो स्वरूप की दृष्टि मे तद्भव लगता है । इसकी व्युत्पत्ति सस्कृन के समस्त पद (दुग्धभाण्ड) या 'दुग्धभाण्डिका' से दी जा सकती है। (118) घणी- भार्या (सज्ञा) दे ना मा. 5-62 - हिन्दी की बोलियो मे पत्नी के लिए 'वना' या 'धनी' शब्द प्रचलित है। राजस्थानी मे तो 'वणी' शब्द ज्यो का त्यो प्रचलित है । इम शब्द को सस्कृत के 'वन' शब्द से भी व्युत्पन्न किया जा सकता है । भारतीय समाज स्त्री को भी एक बहुमूल्य 'धन' मानता है। (119) परिणया- भार्या (संज्ञा) दे ना मा 5-58 - हिन्दी की बोलियो ____ मे प्रचलित 'धनिया' शब्द इसी का विकसित रूप होगा । (120) पझ्य- स्थचत्रम् (संज्ञा) दे ना मा 6 64 - हिन्दी तथा उसकी लगभग सभी बोलियो मे प्रचलित 'पहिया' शब्द इसी का विकसित रूप है । ध्वनिपरिवर्तन नाम मात्र का ह का आगम) है । (121) पसरा- तुरगमनाह (सना) दे. ना मा. 6-10 - घोड़े की पीठ पर डाली जाने वाली गद्दी को 'पाखर' कहा जाता है। यह शब्द 'पाल्हाखण्ड' मे प्रायः व्यवहत हृया है। अवधी के अन्य ग्रामीण क्षेत्रो मे भी (बुन्देलखण्ड के अतिरिक्त) यह शब्द प्रचलित है । (122) पलही- कपास (मना) दे ना. मा - 6-40 - ब्रजभाषा मे 'पहेला' तथा 'पला' शब्द कपाम के अर्थ में ही व्यवहत होते हैं । (123) पंखुडी- पत्रम् (मज्ञा) दे ना मा.-6-8 हिन्दी 'एबुडी' 'पखडी' नया 'बजमापा 'पाबुही' शब्द इसी के विकसित रूप होंगे । इन सभी शब्दो को सस्कृत पक्ष णब्द से व्युत्पन्न करने में पर्याप्त खींच तान करती पडेगी। इस शब्द का सम्बन्ध तमिन 'पृह कु (Punku) शब्द से जोड़ा जा सकता है - संस्कृत में भी 'पुह ख' शब्द तोर के परदार निरे के अर्थ मे आता है। इसे भी तमिल की ही देन माना जा मरता है। (124)- पडवा - पट्टी (मना) दे ना मा 6-6 - हिन्दी 'पडाव' गब्द इमी में विकनित माना जा सकता है। इस शब्द को अरवी या फारसी का मानना उपयुक्त नहीं है- क्योंकि हेमचन्द्र के समय तक भारत मे मुसलमान था तो
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy