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________________ [ 193 (109) तडफडिन - परितश्चलितम् (विशेषण) दे ना मा 5.9 - हिन्दी 'तडफड़ाना' क्रियापद या त्वरावाची तडफड' विशेषण पद इसी शब्द के विकास (110) तहरी-पकिला सुरा (सज्ञा) दे. ना मा 5-2 - अवधी मे 'तहरी' शब्द थोडे अर्थ परिवर्तन के साथ प्रचलित है । यहा इसका अर्थ देर तक आग पर चढाया गया वर्तन है। शराब चू कि बहुत देर तक आग पर बर्तन चढा कर निकाली जाती है इसीलिए देर तक आग पर चढाये गये वर्तन को 'तहरी' कहा जाने लगा होगा। (111) तल्लं- पल्वल (सज्ञा) दे ना मा 5-19 - हिन्दी 'ताल' या तिलया' शब्दो के मूल मे यही शब्द है । (112) ताला- लाजाः (भुना हुआ अनाज) (सज्ञा) दे. ना मा 5-10 - हिन्दी तथा उसकी वोलियो मे प्रचलित 'तलना' क्रियापद इसी शब्द से सबद्ध माना जा सकता है - जैसे 'तला हुमा चना' अन्तर केवल इतना ही है कि मूल 'ताला' शब्द का अर्थ 'पाग मे भुनी हुई वस्तु' है जब कि तलना क्रिया तेल आदि के माध्यम से भूनने की क्रिया का द्योतन करती है । (113) तुलसी-सुरलता - (सज्ञा) दे ना मा 5-4 हिन्दी तथा उसकी सभी वोलियो मे 'तुलसी' शब्द एक पौधे के लिये प्रचलित है। (114) थरहरिनं- कपितम् (विशेषण) दे ना मा 5-27 - हिन्दी 'धरथर' क्रिया विशेषण (जैसे थर-थर कापना) इसी शब्द से सबद्ध किया जा सकता (115) थाहो- स्थानम् गम्भीर जलम् (सज्ञा) ना, दे, मा, 5-3 - हिन्दी 'थाह' तथा 'अथाह' दोनो ही इसी शब्द से विकसित होगे । पानी की गहराई नापकर उसकी तलीय भूमि का पता लगाना 'थाह लेना' कहलाता है । इसी प्रकार अतल गहराई वाले जल को 'अथाह' कहते हैं, इस प्रकार दोनो ही शब्द उपर्युक्त 'देश्य' शब्द से सम्बद्ध किये जा सकते हैं । (116) थूहो- प्रासाद शिखरम् - वल्भीकम् (सज्ञा) ना, दे, मा, 5-32, हिन्दी तथा उसकी बोलियो मे प्रचलित 'ठूह' या ढूह शब्द इसी से विकसित हुआ होगा। ऊ चे स्थान के लिए तथा दीमको की बावी आदि के लिए भी 'ढूह' शब्द का व्यवहार होता है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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