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पानी रोकने के साथ ही रास्ते का काम भी देते है) शब्द के रूप मे विकसित देखा जा सकता है।
(100) डाली- शाखा (सना) दे. ना. मा 4-9 - हिन्दी 'डाली' 'डाल' प्रादि पद इसी से सबद्ध हैं । अवघी मे 'डार' के रूप मे इसमे थोडा ध्वनि परिवर्तन हुमा है । सस्कृत के 'दल' शब्द से इसकी व्युत्पत्ति प्राय : असम्भव सी है ।
(101)वो- श्वपच : (मज्ञा) दे ना मा 4-11 - हिन्दी मे 'डोम' शब्द एक अस्पृश्य जाति विशेष के अर्थ मे प्रचलित देखा जा सकता है।
(102) डोला- शिविका (सना) दे ना मा 4-11 - हिन्दी मे तथा लगभग उसकी सभी बोलियो मे 'डोला' या 'डोली' शब्द पालकी (एक वाहन विशेष) के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं । सस्कृत 'दोला' शब्द मे भी इसे व्युत्पन्न किया जा सकता है।
(103) ढंकरगी- पिधानिका - (सज्ञा) दे ना 1 4-14 -हिन्दी 'ढक्कन' 'ढकनी' - अवधी तथा व्रज 'ढकना' 'ढकनी' आदि पद ढकरणी' के ही विकसित रूप हैं । इस शब्द के विकसित रूप (जसे ढकना) सज्ञा और क्रिया दोनो ही रूपो में प्रचलित हैं।
(104) की- वलाका (धान प्रादि कूटने का उपकरण) (सज्ञा) दे ना मा 4-15-डेकी'- शब्द अपने प्राचीन अर्थ मे ही अाज भी हिन्दी तथा उसकी अन्य वोलियो मे प्रचलित है।
(105) ढेंका- कूपतुला (सज्ञा) दे ना मा 4-17 - हिन्दी 'का' 'ढेकुल' या' ढेंकुली' कुए से पानी निकालने वाली ची के अर्थ मे प्रचलित है।
(106) एक्को-ब्राणम् (मक्षा) दे ना मा 4-46 - हिन्दी 'नाक' शब्द इसी का विकसित रूप है इसे सस्कृत 'नासिका' से व्युत्पन्न करने में पर्याप्त खीचतान करनी पड़ेगी।
(107) णत्या-नासारज्जु (सज्ञा) दे. ना मा 4-17 - हिन्दी 'नाथ' 'नाया' या 'नथान' शब्द इमी के विकमित रूप हैं । नाक छेद कर पहने जाने वाले प्राभूपण विशेष 'नथ' या 'नथुनी' (नथनी भी) का सम्बन्ध भी इसी शब्द से जोन जा सकता है।
(108) तरगं- सूत्र (सज्ञा) दे ना मा. 5-1 - हिन्दी 'तागा' (सूत्र) शब्द इसी शब्द का विकसित रूप है।