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(93) टिक्क टिपी-तिनकम् 'मज्ञा) दे. ना मा. 4 3-हिन्दी 'टीका' टिपकी या "टिप्पी' शब्द इन्ही शब्दो के विकास है । सस्कृत का 'टीका' शब्द प्राकृत से लिया गया होना चाहिए।
194) देवकर-स्थल (फडी जमीन) (सज्ञा) दे ना. मा. 4-3-ग्रवधी मे 'ठेकार' या 'ठोक्कर' शब्द कडी व पथरीली भूमि के अर्थ मे प्रयुक्त हुए है । हिन्दी के 'ठोकर' शब्द के मूल में भी ये ही शब्द है । इन शब्दो का सम्बन्ध 'टेक्कर' से जोडा जा सकता है।
(95) टट्टया-तिरस्करिणी (पर्दा) (सज्ञा) दे ना मा 4 1-हिन्दी 'टट्टी' अवधी तया ब्रज 'टटिया' शब्द इसी के विकसित रूप है अन्तर केवल इतना ही है कि हेमचन्द्र ने इसका प्रयोग कपड़े के बने पर्दे के अर्थ मे किया है जब कि इसके विकनित स्प घास-फूस के बने हुए प्रोट करने के साधन विशेष के वाचक है।
(96) ठल्लो-- निर्धन · (विशेषण) दे ना मा 4-5 - हिन्दी मे 'ठल्ला' 'निकला' आदि पद इसी के विकसित रूप है। अवधी के 'उठल्लू' शब्द का सम्बन्ध भी इसी से जोड़ा जा सकता है। हेमचन्द्र ने इसका प्रयोग निर्धन या दरिद्र के अर्थ मे किया है । हिन्दी मे यह शव्द अकर्मण्यता असमर्थता तथा आलस्य आदि का वाचक होकर विस्तृत अर्य धारण करने वाला बन गया है, फिर भी इसके अन्तराल मे मूल अर्थ निहित देखा जा सकता है ।
' (97) ठिक्क- शिश्नम् (सज्ञा) दे ना मा 4-5 - हिन्दी की ग्रामीण पोलियो मे प्रचलित 'ठेगा' शब्द इसी शब्द का विकसित रूप है। मूल मे अश्लीलता होने के कारण शिश्न के स्वरूप गत साम्य के आधार पर 'ठेंगा' शब्द ' गूठे' का वाचक हो गया है । परन्तु यह सभ्य समाज द्वारा आरोपित अर्थ है, गावो मे इस शब्द फा अर्थ अब भी शिश्न ही है ।
198) डलो- लोष्ट' (सज्ञा) दे. ना मा 4-7 -- हिन्दी मे 'डला' या 'डली' शब्द तथा अवधी मे 'ढेला' शब्द मिट्टी के पिण्डीकृत मिट्टी के टुकडे के वाचक हैं। ये सभी शब्द 'डलो' के ही विकसित रूप होने चाहिए।
(99) डंडो-डडी - मार्ग (सजा) दे. ना. मा 4-8 - हिन्दी तथा उसकी सभी बोलियो मे डडी (जैसे पगडडी) शब्द ज्यो का त्यो छोटे एव सकरे. मार्ग के लिये प्रचलित है । 'ड डओ' पद अवधी मे 'डाड' (खेतो पर बनाये गये मेड, जो