SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 190 ] (86) झखो-तुष्ट (विशेषण) दे. ना. मा 3-53 हिन्दी तथा उसकी वोलियो मे प्रचलित झखना (परेशान होना, तरसना) क्रियापद का सम्बन्ध इस शब्द से जोड़ा जा सकता है। परन्तु अपनी विकमावस्था में इसका अर्थ विल्कुल उलट गया है । शब्दो के अर्थ विकाम मे यह कोई नवीन घटना नही है । अव बुद्धिमत्ता और ज्ञान का वाचक 'बुद्ध' शब्द अपनी लवी यात्रा के बाद 'बुद्ध' के रूप मे एकदम विपरीत अर्थ देने लगा, तो सतुष्टि वाचक (झग्व) शब्द लम्बे अन्तराल के बाद उलट कर असतुष्टि वाचक बन गया तो इसमे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। (87) झडी-निरन्तर वृष्टि (सत्रा) दे ना मा. 3-53-हिन्दी मे 'मडी' तथा अवधी मे 'झरी' आदि ल्पो मे इसी शब्द का विकास हुआ है । यह शब्द ज्यो का त्यों तमिल मे भी मिलता है । वहा 'जडि' शब्द पाता है। वर्गीय महाप्राण ध्वनियो के अभाव मे इसका उच्चारण 'झाड' भी किया जा सकता है । (88) झमाल-इन्द्रनालम्-(सज्ञा) दे. ना मा 3-53-हिन्दी तथा उसकी सभी वोलियो मे 'भमेला' पद व्यवहृत होता है। यह शब्द समझ मे न आने वाले कृत्य या झमट का वाचक है । ध्वनिगत और अर्थगत समीपता को देखते हुए इसका सम्बन्ध उपर्युक्त शब्द से जोड़ा जा सकता है। (89) भलुसिन-दग्धम् (विशेषण) दे ना. मा 3-56-हिन्दी 'झुलसना' व्रजभाषा तथा अवधी 'झोसना' 'भसना' क्रिया पद इमी शब्द से विकसित होंगे । 'भामना' और 'भउँसना' तो इसके और भी समीप हैं "भुलसना' भी मान 'उ' कार परिवर्तन से समीप ही है। सरकृत 'ज्वल' या 'भल' पदो से इसकी व्युत्पत्ति क्यो न होगी। (90) झसो-अयश (दिशेपण) दे. ना मा 3-60-अववी मे 'झाँस' शब्द दुप्ट और वेईमान व्यक्ति के विशेपण के रूप में प्रयुक्त होता है-यह शब्द स्पष्ट ही "मासो' का विकसित रूप है। (91) झट-अलीकम् (सज्ञा) दे ना मा. 3-58-हिन्दी तथा उमकी सभी बोलियो मे (भूठ) शब्द व्यवहृत होता है वह इसी पद का विकसित रूप है । (92) नर-कुटिलम् (विशेषण) दे ना मा 3-59-अवधी में 'झूर शब्द मूबा हुया का अर्थ देता है । दुष्ट व्यक्ति भी अत्यन्त रुक्ष ही होता है । अत पहले कृटिलता का वाचक यह शब्द अर्थ विकास परम्परा मे लक्षणया 'रक्षता' (नमेपन) का वोधक हो गया होगा।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy