________________
[ 189
(78) छिण्णाली छिण्णालो-जार (विशेषण) दे ना मा. 3-27-हिन्दी तथा उसकी वोलियो मे चरित्र भ्रष्ट तथा कामी स्त्री-पुरुषो के लिए प्रयुक्त होने वाले 'छिनाल 'छिनार' (प्रवधी) छिनरा यादि पद इन्ही शब्दो से विकसित होगे । सस्कृत 'छिन्नलाज ' से इन्हे व्युत्पन्न करना उपयुक्त न होगा।
(79) डॅडी- लघुरथ्या (सज्ञा) दे. ना. मा 3-31-अजभाषा मे 'छेडी' शब्द सकरे एव छोटे रास्ते के लिए प्रयुक्त होता है । यह स्पष्ट ही 'छेडी' शब्द का विकसित रूप है।
(80) जगा-गोचर भूमि (सज्ञा) दे ना. मा-3-40-हिन्दी-'जगल' शब्द को इससे विकसित माना जा सकता है। ब्रजभाषा मे 'जगल' शब्द जल रहित भूमि के अयं मे भी प्रचलित है।
(81) जोण्णलिया-घान्यम् (सज्ञा) दे ना मा 3-50 ब्रजभाषा जुणरी, जुनगे, अवघी जोन्हरी भोजपुरी जनरी, राजस्थानी मे जोगरी या जुगरी तथा कुछ बोलियो मे जोगरा या जनेरा शब्द एक धान्य विशेप के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। ये सभी शब्द उपयुक्त देश्य शब्द के ही विकसित रूप हैं।
(82) जाडो-गुल्मम् (सज्ञा) दे ना मा. 3-15-हिन्दी 'झाडी' शब्द इसी का विकसित रूप है।
(83) झाडं-लतागहनम् (सज्ञा) दे ना मा 3 57-हिन्दी का 'झाड' शब्द इमी का विकसित रूप होगा । सस्कृत “झाट' शब्द भी प्राकृत का शब्द होना चाहिए।
(84) झकि -वचनीयम् (चुप्पा) (विशेषण) दे. ना मा 3-55हिन्दी का झक्की शब्द इसी से विकसित होगा। इसमे अल्प ध्वन्यात्मक विकास के साथ ही थोडी मात्रा मे अर्थगत विकास भी दृष्टिगोचर होता है ।
(85) झ खरो-शुष्कतरु (सज्ञा) दे ना भा. 3-54-हिन्दी 'झखाड' अवधी, 'झाखर' आदि शब्द इसी के विकसित रूप हैं। यहा थोड़ा सा अर्थविकास हुया है । हेमचन्द्र ‘झखर' शब्द का प्रयोग 'सूखे वृक्ष' के अर्थ मे करते हैं --जब कि हिन्दी मे 'झंखाड' या अवधी मे 'झाखर' पदो का प्रयोग पेड को काट कर डाल दी गयी सूखी डालियो के समूह तथा अन्य कटीली झाडियो प्रादि के अर्थ मे होता है ।