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________________ 170 ] निश्चित रूप से उसी अर्थ में द्रविड तथा अनार्य कोल, मुण्डा, सथाल आदि भाषाओ में खोजे जा सकते हैं । इस ओर प्रयास भी हुए हैं, परन्तु इन शब्दो के विकास को भापायो में खोजने का प्रयास क्रम ही हुया है। मानक हिन्दी तथा उमकी बोलियो में भी ये शब्द अपना रूप बदल कर या फिर उसी रूप में व्यवहृत हुए हैं यहा यही देखना अभीष्ट है। अाज की भापायो मे 'देशी' शब्दो का विकास दिखाने के पूर्व ऐसे शब्दो की सर्वथा पूर्वसिद्ध प्राचीनता पर विचार कर लेना असगत न होगा। 'देशी' शब्द अत्यन्त प्राचीनकाल से ही असभ्य और अशिक्षित वर्ग के बीच प्रयुक्त हाते रहे हैं । म्वय ऋग्वेद, जो आर्यों का प्राचीनतम प्रामाणिक ग्रन्थ है ~ उसे देखने से स्पष्ट हो जाता है कि दो तरह की भापाए उस युम मे भी थी। ऋग्वेद प्रथम मण्डल तथा दशम मण्डल की भाषा द्वितीय से अष्टम मण्डल तक की भापा से सर्वथा अलग रूप में देखी जा सकती है। प्रो० विल्सन ने अपनी "एन ओरिजन पाव इण्डिया" नामक पुस्तक मे एक स्थान पर लिखा है कि भारत में आर्य सभ्यता के उदय से पहले ही जो भाषाए , यहा विद्यमान थी उनका लगभग 10 वा भाग वाद की सभी भाषाम्रो में प्राप्त होता है । प्रो० विल्सन के इस तथ्य पूर्ण कथन को ध्यान में रखते हुए यदि हम महपि पाणिनि के लौकिक तथा वैदिक भापा के व्याकरण-ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' को देखें तो कुछ पप्ट तव्य नहा भी मिलेगे । पाणिनि के समय में भी शिक्षितो की भाषा मे अलग हटकर कुछ भापाए थी जिन्हें अधिकारी विद्वानो ने 'प्राकृत (अशिक्षित लोगो की। भापा कहा है। इस बात का समर्थन पतजलि और भरत भी करते है। पाणिनि के वातुपाट मे कई धातुए ऐसी पायी हैं जिनका प्रयोग उनके पूर्व की माहित्यिक भाषा में नहीं मिलता। इन धातुओं का विकास प्राश्चर्यजनक रूप से अाधुनिक प्रार्य-मापात्रों विशेषतया हिन्दी मे मिलता है, परन्तु साहित्यिक सस्कृन में इनका प्रयोग कम ही हुआ है । कुछ वातुए द्रष्टव्य हैं (1) अड्ड-अभियोगे-सिद्धान्त कौमुदी 11371-हिन्दी में 'अडना' क्रिया पद । (2) कडु कार्कण्ये - मि. को 11372 हिन्दी मे 'कड़ा' विशेषण पद। ___ "A Portion of a primitive unpolished and scanty speech, the relies of a period prior to civilization had been calculated to 2mount one tenth of the speech on the whole."
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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