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________________ मानक हिन्दी तथा उसकी प्रमुख बोलियों __ में विकसित देश्य शब्द आधुनिक भारतीय प्रार्य भाषाओ के मूल मे विद्यमान प्राकृत भाषाम्रो की शब्द सम्पत्ति को वैयाकरणो ने तीन भागो मे विभाजित किया है- (1) तत्सम (2) तद्भव तथा (3) देशज । इनमे प्रथम दो वर्ग के शब्दो का विकास व्याकरण सम्मत और सीधे सस्कृत से जुडा हुअा है । तृतीय वर्ग के 'देश्य' शब्द सम्पूर्ण भारतीय आर्य भाषामो की विविध विकासात्मक अवस्थाओ की अनोखी कहानी प्रस्तुत करने वाले है । प्राकृतो मे आयी हुई, अव्युत्पाद्य 'देश्य' शब्दावली का सम्बन्ध, यहा पार्यो से भी पहले रहने वाली जातियो से जोड़ा जा सकता है। ऋग्वेद से लेकर भारतीय आर्य परम्परा की जितनी भी कृतिया लिखी गयी या जितनी भाषाए बनी, सभी पर 'देश्य' शब्दावली की अमिट छाप है । इसी परिपाटी से आधुनिक भारतीय आर्य भापानो प्रमुखत· हिन्दी तथा उसकी प्रमुख बोलियो मे भी 'देश्य' शब्दो का व्यवहार होता आ रहा है, यही सिद्ध करना इस अध्याय का प्रमुख विषय है। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी की तत्सम और तद्भव शब्दावली के अध्ययन के अनेको प्रयास हो चुके है, परन्तु इसमे युग-युगो से व्यवहृत होते आये 'देश्य' शब्दो के अध्ययन के प्रयास लगभग नहीं के बराबर हुए हैं। प्राचार्य हेमचन्द्र के 'देशज-कोश' 'देशीनामनाला' के प्रकाशित होने के बाद से ही विद्वानो ने इसमे सकलित शब्दावली का अध्ययन भिन्न-भिन्न दृष्टियो से प्रारम्भ किया । विदेशी विद्वानो मे पिशेल, टर्नर आदि ने इन शब्दो का अध्ययन अनार्य भाषानो के सन्दर्भ मे प्रस्तुत किया है। इन देश्य शब्दो मे लगभग 700 शब्द
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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