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________________ 158 ] के व्यवहार की भाषा के शब्द रहे होंगे । साहित्यिक भापा का यह स्वभाव होता है कि वह अपने से प्रायः 'ग्रामीण तत्त्वो" को दूर रखती है जैसा कि सस्कृत में देखा जा सकता है। परन्तु ऐसी भापा बहुत दिन तक नहीं चल पाती वह स्थिर होकर रह जाती है। उमी समय फिर कोई लोक नापा ऊपर उठकर साहित्यिक मापा का स्थान ग्रहण करनी है। ऐसी ही लोक सम्मत भाषायें प्राकृतें थीं जिनमे अधिकाशत. ग्रामीण तत्व पाये जाते हैं। प्रा० प्रा० नापायो मे इस शब्दो के प्रचलित रूप और वातावरण को देखकर यही निश्चित होता है कि ये अवश्य ही भिन्न-भिन्न प्रान्तो की स्थानीय जातियो के शब्द रहे होगे । जहा तक इनमे पायेंतर तत्त्वो के मिश्रण का प्रश्न है यह अत्यन्त विवादास्पद है। इसकी विस्तृत पर्चा एक अलग अध्याय मे की जायेगी। देशी पाब्दों का उद्भव और विकास : 'देशी' शब्दो के स्वरूप विवेचन को लेकर अनेक भारतीय और विदेशी विद्वानो के मतमतान्तरो की विस्तृत चर्चा की जा चुकी है । जहा तक इनके उद्भव और विकास का प्रश्न है इसे हम दो मोटे कारणों में विभाजित कर सकते हैं (1) भाषा वैज्ञानिक कारण (2) सास्कृतिक कारण (1) भाषावैज्ञानिक कारण : ___ इमे दो भागो में विकसित किया जा सकता है (अ) देशी शब्दो का विभिन्न प्रान्तीय बोलिया से उद्भव (व) देशी शब्दो का अार्येतर भाषामो से उद्भव । (अ) देशी शब्दों का विभिन्न प्रान्तीय बोलियों से उद्भव . "देशी" शब्दो का प्राकृत भाषा से घनिष्ठतम सम्बन्ध है। यह ऊपर प्रतिपादित किया जा चुका है। निष्कर्ष रूप मे यह भी प्रतिपादित किया जा चुका है कि सस्कृत और नाहित्यिक प्राकृत दोनो ही एक अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित प्राकृत से निकली हैं । इसे ही ग्रियर्सन प्रभृति विद्वानो ने प्रथम प्राकृत कहा है । यह वेदो की भाषा के निर्माण के पहले से ही प्रचलित जन मापा रही होगी। इस सिद्धान्त की पुष्टि निम्नलिखित भाषा वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी हो जाती है (1) माहित्यक भाषाएं मदेव ही किसी न किसी बोलचाल की भाषा से विकसित होती हैं और आगे चलकर जव उनका व्याकरण निमित हो जाता है
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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