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________________ [ 157 प्राकृत-वैयाकरणो ने इन समस्त 'देश्य' शब्दो मे अनेक नाम और धातुयो को सस्कृत नामो और धातुओ के स्थान मे प्रादेश द्वारा सिद्ध करके तद्भव विभाग के अन्तर्गत किया है।' यही कारण है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपनी “देशीनामामाला" मे केवल देशी नामो का ही सग्रह किया है और देशी धातुओ का अपने प्राकृत व्याकरण मे सस्कृत धातुप्रो के आदेश रूप मे उल्लेख किया है, यद्यपि प्राचार्य हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती कई नैयाकरणो ने इनकी गणना देशी धातुप्रो मे की है । ये सब नाम और धातु सस्कृत के नाम और धातुग्रो के आदेश रूप मे निष्पन्न करने पर भी तद्भव नही कहे जा सकते क्योकि सस्कृत के साथ इनका कुछ भी सादृश्य नहीं है । कोई-कोई पाश्चात्य भापा तत्वज्ञ का यह मत है कि उक्त देशी शब्द और धातु भिन्नभिन्न देशो की द्रविड मुण्डा आदि अनार्य भाषाम्रो से लिये गये है । यहा पर कहा जा सकता है कि यदि आधुनिक आर्य भापायो मे इन देशी शब्दो और धातुओ का प्रयोग उपलब्ध हो तो यह अनुमान करना असगत नहीं है। किन्तु जब तक यह प्रमाणित न हो कि ये देशी शब्द और धातु वर्तमान आर्य मापात्रो मे प्रचलित है, "तब तक ये शब्द और धातु प्रादेशिक आर्य मापात्रो से गृहीत हुए है" यह कहना ही अधिक सगत प्रतीत होता है । "इन आर्य भाषामो मे दो एक देश्य शब्द और धातु प्रचलित होने पर भी" वे अनार्य भापायो से प्राकृत मे लिये गये हैं" यह अनुमान न कर 'प्राकृत भाषाग्रो से ही वे देश्य शब्द और धातु अनार्य भाषामो मे गये हैं" यह अनुमान किया जा सकता है। हा जहा ऐसा अनुमान करना असम्भव हो वहा हम यह स्वीकार करने के लिये बाध्य होगे कि 'ये देश्य शब्द और धातु अनार्य भाषाप्रो से ही प्राकृत मे लिये गये हैं, क्योकि आर्य और अनार्य ये उभयजातिया जव एक स्थान मे मिश्रित हो गयी है तब कोई कोई अनार्य शब्द और धातु का आर्य भाषामो मे प्रवेश करना असभव नहीं है ।'' इस प्रकार आधुनिक भाषा वैज्ञानिको की दृष्टि मे मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओ मे प्रचलित 'देशी' शब्द अनादिकाल से सामान्य जन जीवन के बीच व्यवहृत होने वाले शब्द है । आधुनिक आर्य भाषामो की ग्रामीण बोलियो मे इनका बहुतायत से पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये भिन्न-भिन्न प्रान्तो की जनसाधारण 1. N हेमचन्द्र कृत प्रा व्या के द्वि पा के 127, 129, 134, 136, 138, 141, 174 वगैरह सूत्र तथा चतुर्थपाद के 2, 3, 4 5, 10 11, 12 प्रभृति सूत्र ।' एते चान्येर्देशीषपठिता आपि अस्माधिर्धात्वादेशीकृता (हे प्रा 4, 2) अर्थात् अन्य विद्वानो ने वउजर, पजर उफाल प्रभति धातुओ का पाठ देशो में किया है तो भी हमने सस्कृति धातु के आदेश रूप से ही बताये हैं। -पाइअसहमहण्णवो उपोद्घात, पृ 21-22 की पादटि 'पाइअसद्दमहण्णवो' प्रथम सस्करण-उपोद्घात, प 21-22। 3
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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