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जा सकता है । एक अन्य स्थान पर वे इन शब्दो को निश्चित रूप से प्रार्यों से पूर्व भारत में रहने वाले ग्रादिवासियो की भाषा से सर्भित करते हैं । इनका कहना है कि "देशा" शब्द आर्यों द्वारा विजित की गयी जातियो की भाषा के शब्द रहे
होगे।
डा पी डी गुरणे. स्वीकार करते हैं कि तत्सम और तद्भव शब्दो से अलग प्राकृतो मे अनेको देश्य या देशी . ग्रामीण) शब्द भी पाये जाते है । हेमचन्द्र ने अपने "देशीनाममाला" नामक कोण मे ऐसे शब्दो का संग्रह किया है । ऐसे ही कुछ शब्दो का संग्रह धनपाल ने अपने प्राइग्रलक्षी नाममाला नामक कोश ग्रन्थ मे भी किया था । यद्यपि इन दानो कोण ग्रन्यो मे सकलित अनेको शब्द तद्भव हैं फिर भी इनमे अनेको शब्द ऐसे है जिन्हे सस्कृत से अलग स्रोतो से सदमित किया जा सकता है । प्रागे हेमचन्द्र द्वारा गलती से देशी मान लिये गये शब्दो की एक सूची देते हैं जो वास्तव मे तद्भव है । इसके बाद ही उनका कथन है कि धनपाल और हेमचन्द्र द्वारा सकलित कोशो मे पाये जाने वाले शब्द अाधुनिक आर्य-भाषाप्रो मे आर्येतर भापायो के प्रभाव का सुष्ठ द्योतन करते है । कुछ शब्द तो निश्चित रूप से द्रविड भापायो से सदभित किये जा सकते हैं ।
प्राकृत भापानो और उनमे प्राप्त होने वाले विभिन्न तत्त्वो पर जार्ज ग्रियर्सन ने अपने "लिग्विस्टिक सर्वे श्राफ इन्डिया" नामक ग्रन्थ की प्रथम जिल्द (भूमिका)4 मे विस्तारपूर्वक विचार किया है । वहा उन्होने प्राकृतो की तीन अवस्थाप्रो प्रथम, द्वितीय और तृतीय का विवेचन करने के वाद "देश्य" शब्दो के बारे मे लिखा है
"भारतीय व्याकरणकारो द्वारा बताया गया प्राकृत शब्दो का तीसरा प्रकार 'देश्य' कहलाता है । इसके अन्तर्गत ऐसे शब्द पाते हैं जिन्हे व्याकरण से सिद्ध नहीं किया जा सकता । परन्तु इन व्याकरणकारो द्वारा असदर्भित बताये जाने वाले तथा कथित अनेको "देश्य" शब्द आधुनिक भाषा वैज्ञानिको द्वारा तद्भव शब्द बताये गये हैं। इन शब्दो मे बहुत थोडे से शब्द ऐसे हैं जिन्हे मुण्डा तथा द्रविड भाषामो से समित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन शब्दो मे से अधिकतर शब्द
1. Bharkarkar 'Wilson philological lectures (1914) P 106 2. Introduction to comparative philology III Ed. 1958 P. 275
276 277 3 वही, पृ 2761 4. Linguistic survey of India VI P. 127-28.