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168 ] है । इन ग्रन्य मे प्राकतो नी ममस्त शब्द राशि को पाच भागो मे विमन किया गया है । 1 यहा चीथे विभाग नेपातिक के अन्तर्गत देशी शब्दो को समाहित कर लिया गया है । वहा दिये गये उदाहरण-अक्कतो, जह, जहा आदि हैं ।
जन भाषाओं के साथ-साथ सदैव ही किसी न किसी अश मे मम्कृत अभिजात वर्ग की मापा के रूप में प्रतिष्ठित रही है । सस्कृत में अधिक से अधिक जनभापा के तत्त्वो को न रखने की प्रवृत्ति रही। फिर भी ये शब्द काफी मात्रा मे स्वय ही स्वाभाविक रूप से पा गये । मस्कृत में भी शब्दो के दो विभाग किये गये हैं (1) व्युत्पन्न शन्द (2) अव्युत्पन्न शब्द । व्याकरण के नियमो मे सिद्ध होने वाले शब्द व्युत्पन्न तथा जिनकी मिद्धि व्याकरण सम्मत न होकर लोक परम्परा या व्यवहार में हो वे अव्युत्पन्न गब्द कहलाये। इन्ही अव्युत्पन्न शब्दो के बारे मे पतजलि ने कहा है कि लोक मे शब्दो का भण्डार बहुत बड़ा है उन शब्दो मे कुछ ऐसे हैं जिन्हे व्याकरण से व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता । ऐसे शब्द लोक मे स्वत उत्पन्न होते हैं और अर्थों के साथ उनका सम्बन्ध स्त्रय जुड़ जाता है और वे लोगो के कण्ठ मे रहकर व्यवहार मे आते हैं। उनके लिये लोक ही प्रमाण है। इसी प्रकार के दो को पाणिनि ने मना प्रमाण'2 कहा है। संस्कृत मे कुछ ऐसे भी शब्द थे जो विना व्याकरण के नियम के ही प्रयुक्त होते थे । पाणिनि ऐमे शब्दो को 'यथोपदिष्ट' मानकर प्रामाणिक मान लेते हैं- पृपोदरादीनि-ग्रादिप्टम् ।। सम्भवत इन्ही भावारो पर व्याकरण द्वारा अव्युत्पादित गन्द आचार्यों द्वारा देशी कह दिये गये हैं ।
इसके बाद प्राकृत के व्याकरणकारो ने 'प्राकृत-शब्द- सम्पत्ति' को तीन प्रमुख भागो में बाटा है (1) नत्सम (2) तद्भव (3) देश्य या देशी । प्राकृतो का सर्वप्रथम भाषा गत विवेचन करने वाले भरन हैं । इन्होने भी प्राकृत को तीन प्रकार के शब्दो ने युक्त माना- ममान, विभ्रष्ट तथा देशीमन । अन्य प्राकृत व्यारणकागे मे 'चण्ड' इने 'देशीप्रसिद्ध' कहते हैं त्रिविक्रम मार्कण्डेय सिंहराज वाग्भट्ट यादि देव या देशी कहते हैं।
___ इस प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र के पहले तया दाद के सभी प्राचार्यों नया विद्वानो ने प्रार्य भापामो में "देशी" शब्दो की स्थिति स्वीकार की है। अपने
पचणामे पचविह, पराणत्त त उहा-(1) नामिक (2) नेपातिक (3) आध्यानिक (41 योपगिक (5) मिश्र । अणदारमुत-प्राकृत मापा और माहित्य का आलोचनात्मक इनिहास, 810 नेमिचन्द्र पाद टिप्यागी, १058 नदगिय मनाप्रमागत्वात । 11153 हे० प्रा० व्या0 111 त्रिवियम का व्याग प्रारम्मिक्र 6 ठी कारिका-भाव्द चन्द्रिका करिका 49 प्रभचन्द्र काव्याणकरण 11116 इत्यादि ममान विघ्रट देशीमतमापिच । ना0 जा0 1713