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________________ [ 147 की मस्कृति प्रारम से ही यामीण संस्कृति रही है अत ग्रामीण या जनभाषा के शब्दो का प्रभाव इनकी साहित्यिक भाषा पर भी पडा ।।। ब्राह्मणकाल मे प्रार्य-मापा के तीन रूपो का स्पष्टत अनुमान किया जा मकता है- (1) उदीच्य-उत्तरीय या पश्चिमोत्तरीय (2) मध्यदेशीय और (3) प्राच्य । उदीच्च परिनि प्ठिन भापा थी। 'कोपीतकि ब्राह्मण' मे एक जगह उल्लेख है कि 'उदीच्य प्रदेश मे भाषा बडी जानकारी से वोली जाती है, मापा सीखने के लिए लोग उदीच्यजनो के पास ही जाते है, जो भी वहा से लोटता है, उसे सुनने की लोग :च्छा करते है।' '(तस्माद उदीच्या प्रजाततरा वाग् उद्यते, उदच एवयन्ति वाच शिक्षितम्' यो वा तत् प्रागच्छति, तस्य वा शुश्रूपन्त इति )2 _ -गाखायन या कौशीतकि ब्राह्मण 716 ॥ 'प्राच्या पूर्व मे रहने वाली बर्बर अटनशील और असुर वर्ग के लोगो की भापा के सम्पर्क से प्राप्त पार्य-मापा का रूप है। परिनिष्ठित भाषा-भाषी प्रार्य इन प्राच्य जनो को घृणा की दृष्टि से देखते थे। इस प्रकार यह प्राच्य भाषा स्थानीय वोलियो की ध्वन्यात्मक प्रवृत्तियो तथा समवत शब्दावली से भी युक्त थी। इसी श्राशय का उल्लेग्व पतजलि के महाभाप्य में एक ब्राह्मण मे आयी कथा के सदर्भ मे भी मिलता है । वहा बताया गया है कि असुरवर्ग के लोग सस्कृत के शब्दो का शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते । वे 'अरयो' को 'ग्रलयो, कहते हैं। क्यों कि उनकी भाषा की प्रकृति परिनिप्ठित भापा से परे हटकर है। प्रार्य-भापा का मध्यदेशीय रूप उदीच्या और प्राच्या के बीच-विचाव के रूप सामजस्य से प्राप्त हुया । प्राचीन आर्य-मापा के इन तीनो रूमो के उदाहरणस्वरूप एक शब्द के तीन रूप लिये जा सकते हैं- श्रीर, श्रील तथा श्लील, पहले रूप में केवल र' है, जो उदीच्या का लक्षण है। तीसरे मे केवल 'ल' है, जो कि परिवर्ती मागधी को देखते हुये स्पष्टत प्राच्या का लक्षण है और दूसरा रूप 'श्रील' जिसमे 'र' तथा 'ल' दोनो विद्यमान हैं, 'मध्यदेशीया' का रूप है। ब्राह्मणो के वाद पालि साहित्य के विकास के साथ ही जनभाषा का प्रभुत्व वढा । पालि मे 'देशी' तत्त्व बहुतायत से खोजे जा सकते हैं। अभी तक जनभाषा का प्राश्रय लेकर चलने वाली भाषामो मे किसी का व्याकरण नही लिखा गया था। जैन अागम के अन्तर्गत प्राचीनतम रचना 'पायारग' के अन्तर्गत 'अणुप्रोगदार सुत्त' 1 2 देखिये 'भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी' चाटा-, ' 74-751 भारतीय आर्य भापा और हिन्दी, द्वि स , 1 72 से उद्धृत ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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