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[ 145 मे विकसित हुई है। नमिसाधु ने काव्यालकार की टीका मे 'प्राकृतमेवापभ्रश:1 'द्वारा इस प्रावृत को अपभ्र श कहा है 12 निष्पर्ण .
उपर्युत विवेचन यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि 'देशी' शब्दो का प्रादुर्भाव बहन अनादिकाल से बोली जाने वाली जनभाषा से हुआ और समय-समय पर जन मापायो का सहारा लेकर विकसित होने वाली साहित्यिक भाषाए (पालिप्राकृत ग्रादि) इन्हे यात्ममात करती रही। ऐसे शब्द असख्य परिवर्तनो से होकर गुजरने के कारण युगयुगो से विकासमान भापायो का अत्यन्त ही रुचिकर इतिहास बताते है । उनमे अने को प्रातर शब्द भी पायीकृत रूप मे व्यवहृत होते आ रहे हैं। इनका अर्य और नन्दर्भ जानने के लिये हमे व्याकरण का सहारा छोड कर सामान्य लोगो के व्यवहार का महारा लेना पडता है । ये शब्द जिस सदर्भ और वातावरण में प्रादिकाल से व्यवहुत होते या रहे है पाय उसी सदर्भ और वातावरण मे आज भी प्रचलित हैं । जन-मापाग्रो से गृहीत इन शब्दो का हेमचन्द्र ने जैसा परिचय दिया है, प्राज की भाषा में भी वे उसी सन्दर्भ और वातावरण में प्रयुक्त दिखायी देते हैं । व्याकरण ग्रन्यो के बीच इनका सन्दर्भ खोज पाना अत्यन्त दुरूह कार्य है। साथ ही श्रार्यों के भारत प्रागमन के पहले तथा स्वय पार्यो की ही मूलभापा का कोई लिखित प्रमाण न मिलने के कारण इनके उद्भव का पता लगा पाना अत्यन्त कठिन काय है । इन शब्दो का उद्भव भारत मे युगयुगो से बसती चली आयी जातियो के सास्कृतिक इतिहास के मूल मे खोजा जा सकता है।' भारतवर्ष मे अनेक जातियो के लोग और उनकी भिन्न-भिन्न भापाए हैं। इन उपादानो के मिश्रण से ही भारतीय जन तथा भारतीय संस्कृति निर्मित हुई है । ... .. ... । अत्यन्त प्राचीनकाल से भिन्न-भिन्न विदेशी जातिया अपनी विभिन्न संस्कृतियो को साथ लेकर भारत मे यायी हैं और यहा बसती गयी हैं। उन्होने अपने वशानुगत सस्कारो विचारो एव सामर्थ्य के अनुसार यहा व्यवस्थित समाज और संस्कृति का निर्माण किया है और अपने ढग से जीवन बिताने की प्रणालिया और विचार विकसित किये हैं । .......... """। हमारे यहा के आदिवासी निग्रोवट या नेग्रिटो जातिया हैं ...... .. इन नेग्रिटो आदिवासियो के पश्चात् पश्चिमी एशिया की प्रास्ट्रिक जाति के मनुष्यो का आगमन हुआ और उनके पश्चात् द्रविड उसी पश्चिम दिशा से आये। आस्ट्रिक
1. रूद्रट काव्यालकार-1112 की टीका। 2. "प्राकृतभापा दौर साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास"-डा. नेमिचन्द्र, पु. 1001