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________________ [ 141 है। वहां महोप पतंजलि बताते है कि -एक ही शब्द (संस्कृत) के अनेको अपभ्रश भी होते है जैसे संस्कृत गो का अपभ्र श गावी, गोणी, गोता, गोपोतालिका ग्रादि मिलता है - "एकस्यैवशब्दस्य बहवोऽपभ्र शा। तद्यथा गौरित्यस्य गावी, गोणी, गोता, गोपोतालिकेत्येवमादयोऽपभ्र शाः ।" पतजलि द्वारा गिनाये गये उन रूपो में से कुछ को वडा और हेमचन्द्र ने "प्राकृत" शब्दो के रूप मे स्वीकार किया है । यहा इस उल्लेख मे स्पष्ट हो जाता है कि पतजलि शुद्ध सस्कृत से अलग जितने भी शब्द है सभी को "अपभ्र श" कहते है । प्राकृत व्याकरण कार पतनलि के धारा गिनाये गये बहन से अनिल रूपों को 'प्राकृत" का मानते है । अतः स्पष्ट है प्राकृत व्याकरणकार "अपभ्र " फो प्राकृत से अलग नहीं मानते । प्रागे चलकर भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र के 17वें अध्याय मे प्राकृत व देशी भागाग्रो के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा है । वे मस्कृत से विकृत रूपो को प्राकृत कहते हैं और प्राकृत शब्दो से तीन भेद करते हैं - समान (तत्सम) विभ्रष्ट (तद्भव) और देशी । इसी सन्दर्भ मे वे म्लेच्छ प्रयोगो से युक्त भिन्न-भिन्न जाति भापायो का भी उल्लेख करते हैं। उन्होने मागवी, पावन्ती, प्राच्या सूरसेनी अर्धमागधी, वाल्हीका और दाक्षिणात्या सात भापायो तथा शवर, पामीर, चाण्डाल, सचर, द्रविड, उद्रज, हीन और वन चरो द्वारा बोली जाने वाली विमापापो का भी उल्लेख किया है। भरत के इस विवरण की सक्षेप मे व्याख्या करते हुए हीरालाल जैन यह निष्कर्ष निकालते है कि-"भरत मुनि का मत है कि सस्कृत के अतिरिक्त दो प्रकार की भापाए हैं- एक प्राकृत-जिसमे संस्कृत के विकृत शब्द प्रयोग मे आते है और इसलिए जिन्हें वे "विभ्रष्ट' कहते है और दूसरी देशी - जिसमे सस्कृत प्राकृत के शब्द भी हैं तथा कुछ म्लेच्छ (अनार्य अर्थात् असस्कृत शब्द भी हैं। मुख्य देशी भाषाए (भाषा) मागधी भावन्ती ग्रादि सात है और गोण देशी भाषाए (विभापा) शवर आभीर चाण्डालादि की अनेक हैं ।' । हीरालाल जैन द्वारा निकाला गया यह निष्कर्ष सौद्देश्य है- वे यह सिद्ध करना चाहते हैं कि भरत ने भी अपभ्रश (आभीरो की भाषा) को देशी कहा है। परन्तु अपने मन्तव्य की सिद्धि मे वे भरत द्वारा कही गयी बात के सन्दर्भ को भूल गए । यहा भरत का मन्तव्य नाटको मे प्रयोग योग्य भाषाप्रो का हल्का विवेचन 1. 2 चण्ड 'प्राकृत लक्षण' 2,16 गोगावि । हेमचन्द्र प्रा व्या 2,174 गो गौणो, गावी, गाव, गावीओ। नाट्यशास्त्र 17, 1-4-49 तक पाहुड दोहा की भूमिका, पृ. 37 3 4
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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