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position much the same as that of latio of the middle ages. For centuries the Aryan Vernacular langauge of India has been called Prakrit, Prakrit ie the natural, unartificial language as opposed to Sanskrit the polished, artificial language From this definition of the term 'Prakrit' it follows that the vernacular dilects of the period of the vedic hymos as compared with the comparatively artificial Sanskrit language of these hymns as they have been preserved by the Brahmans who complied them were essentially Prakrits and as such they may be called the 'Primary Prakrits' of India
इस प्रकार जार्ज ग्रियर्सन तीन प्रकार की प्राकृतो की कल्पना करते हैं । प्राथमिक प्राकृत द्वितीय प्राकृत और तृतीय प्राकृत । प्राथमिक प्राकृत की स्थिति वे पूर्व उल्लिखित "छान्दस्" के मूल मे मानते हैं । द्वितीय प्राकृत वे माहित्यिक प्राकृतो को बताते हैं जिन्हे हेमचन्द्रादि प्राकृत व्याकरणकार "प्रकृति सस्कृत । तत्रभव तत् आगतम्" आदि कहकर परिमापित करते हैं । तृतीय प्राकृत आधुनिक
आर्य भापानो के मूल मे देखी जा सकती है । यहा हमारा अभीष्ट केवल प्राथमिक प्राकृत से है। यह प्राकृत पार्यों के भारत मे वसने के पहले से जो भापा बोली जाती रही होगी उसमे भी सभित की जा सकती है। आगे विकसित होने वाली साहित्यिक भापायो मे पायी जाने वाली देश्य या देशी शब्दावली निश्चित ही इमी बोलचाल की प्रार्थामक प्राकृत से सम्बन्वित है। ये शब्द आर्य तथा अनार्य दोनो ही वर्ग की अशिक्षित जनता की भाषा मे व्यवहृत होते रहे होंगे। इस प्राशय का प्रमाण हमे वेदो की भापा से भी मिल जाता है । ऋग्वेद की भाषा अधिक साहित्यिक है इसके विपरीत अथर्ववेद की भापा' इन वोल-चाल की भाषा के तत्त्वो से भरी हुई है । वैदिक या छान्दम् भापा के समानान्तर लोक प्रचलित प्राकृत भापाए विकसित होती जा रही थी। अनेको वैदिक रूप जनभापा के तत्त्वो से प्रभावित देखे जा सकते हैं।
1. अथवेद की मष्टि ऋग्वेद से निगली है, रोज व रोज के रीतिरिवाज और जीवा व्यवहार
की बातें और मान्यताए उममे ठीक ठीक प्रतिवन्धित होती हैं। ममग्र दृष्टि में अथर्ववेद के पछ यश ऋग्वेद के समकालीन तो है ही, फिर भी मथववेद के शब्द और शब्दप्रयोग ऋग्वेद में काफी निराले हैं। जिन शब्दो को ऋग्वेद में स्थान नहीं, वे शब्द अववेद मे न्यवहत होते हैं।
~डा प्रबोध वैचारदाम पहित-प्राकृत भाषा, पृ 13 2 सुनीनिकमार घाटा द्वारा लिखित 'भारतीय यायं भापा और हिन्दी', द्वितीय स., ( 74,
471,72 पायो द्वारा लिखित 'भारतीय यामा