SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 137 मे स्वानुर र विकास प्राप्त करने वाली भापाए बताते है । एल्फ्रेड सी, बुलनर' प्राकृत भापात्रों को स्वाभाविक रूप में विकसित मानते हैं। उनका मन्तव्य है कि प्राकृते साधारण लागो के बोलनान की नापाए पी और सस्कृत पढे-लिखे शिक्षित वर्ग की भाषा वी । प्राकृत का सम्बन्ध नाहित्यिक सस्कृत की अपेक्षा 'छान्दस्' से अधिक है। वैदिक 'कान्छन्' भाषा की पति से प्रावतो की प्रकृति कुछ मिलती जुलती हुई है । डा० पिोन भी जनता को मापा को ही मूल प्राकृत के रूप मे मानते है । उनका कथन है "प्राकृत भापायो की जउँ" "जनता की बोलियो के भीतर जमी हुई हैं और न मुन्य तत्त्व प्राधिकाल में जीती जागती और बोली जाने वाली भाषा ने निये गये है, किन्तु बोल-चाल की वे भापाए जो बाद को साहित्यिक भाषानो के पद पर प्रतिष्ठित हुई सत्कृत की भाति ही बहुत ठोकी पीटी गयी, ताकि उनका एक मुगठित रूप वन जाये ।" हिन्दी के प्रमिदृ भाषा वैज्ञानिक डा० हरदेव बाहरी भी प्राकृतो को वैदिक तथा साहित्यिक दोनो ही मस्क तो की जननी मानते हैं - "प्राकृतो गे वेद की साहित्यिक भाषा का विकास हया, प्राकृतो से सस्कृत का विकास भी हवा और प्राकृतो से इनके अपने माहित्यिक स्प भी विकसित हुए।" सर जा ग्रियर्सन ने भी प्राकृातो को वैदिक संस्कृत के समानान्तर ही सामान्य लोगो के बीच बोली जाने वाली भाषा के स्प मे स्वीकार किया है । वे कहते है । "From the incription of Ashoka (Circ-250 BC) and from the writings of grammarian Patanjalı (Cire.150 BC.) we learn that by third century before our era an Aryan Speech (in several dilccis) was cmployed in the north of India and having gradually developed from the ancient vernaculars spoken during the period in which vcdic hymns were composed, was the ordinary language of mutual intercourse Parrell with it the so called classical Sanskrit had developed from one of these dilccts, under the influance of the Brahman's as the secondary language, and had achieved a 1 एल्फेट मी बुलनर 'इण्ट्रोडक्सन टु प्राकृत' पजाब विश्वविद्यालय-लाहौर, द्वारा प्रकाशित द्वितीय सस्करण 1928. 3-4 । यार पिशेल द्वारा लिखित 'प्राकृत भाषामओ का व्याकरण', पृ 14-राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना। प्राकत पापा और उसका साहित्य डा हरदेव बाहरी, राजकमल, प्रका. प्र स प 13 'लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्डिया' इन्द्रोडक्शन, I पी. 121 3
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy