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________________ 134 ] प्राकृत तथा 'देशी' भाषावाची 'प्राकृत' शब्द 'प्रकृति' में निर्मित है। इस 'प्रकृति' शब्द की व्यात्या मे विद्वानो मे बहुत बडा मतभेद है। कुछ विद्वान् इसका अर्थ 'मूलभाषा' करते हैं और कुछ 'मूल' अर्थात् सस्कृत के आधार पर विकसित भापा मानते हैं । भारतीय विद्वत्परम्परा इसी विश्वास को मानकर चली है कि मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाए (पालि, प्राकृत, अपभ्र श) सस्कृत मे ही विकसित हुई हैं। यही कारण था कि अधिकतर प्राकृत व्याकरणकारो जैसे हेमचन्द्र, मार्कण्डेय, वनिक, मिहदेव गणि आदि ने प्राकृत भापायो का मूल उद्गम संस्क त को माना । प्राकृत व्याकरणकारो मे सर्वप्रमुख हेमचन्द्र का कथन है - ___ प्रकृति सस्कृतम् । तत्रभव तत् प्रागतम् वा प्राकृतम् । संस्कृतानन्तर प्राकृतमविक्रियते । सस्कृतानन्तर च प्राकृतस्यानुशासन सिद्धसाध्यमान भेद सस्कृत योनेरेव तस्य लनण न देश्यस्य इति ज्ञापनार्थम् ।।1।। 'प्रकृति मस्कृत है। इम सस्कृत से आयी हुई भाषा प्राकृत है । संस्कृत के पञ्चात् प्राकृत का अधिकार प्रारम्भ होता है । प्राकृत मे जो शब्द संस्कृत से मिश्रित हैं उनको सस्कृत के समान ही जानना चाहिए । प्राकृत मे तद्भव दो प्रकार के हैंसाव्यमान सस्कृत भव, सिद्ध संस्कृत भव । यह प्राकृत का अनुशासन इन दोनो प्रकार के शब्दो का ही प्रतिपादक है । देश्य का नहीं। हेमचन्द्र के इमी मत का समर्थन मार्कण्डेय दशल्पक के टीकाकार वनिक, कर्पूर मजूरी के टीकाकार- वासुदेव, पड्मापाचन्द्रिका के रचयिता लक्ष्मीवर, वाग्भट्टालकार के टीकाकार सिंहदेवगरिग, 'प्राकृत शब्द प्रदीपिका' के रचयिता नरसिंह, गीतागोविन्द की 'रसिकसर्वस्व' टीका के रचयिता नारायण एवं अभिज्ञानशाकु तल के टीकाकार शकर आदि ने भी किया है। वास्तव में इन विद्वानो का सारा प्रयास सस्कृत के माध्यम से प्राकृतो को समझाना था इसी कारण संस्कृत का प्रावार लेते-लेते वे स्वाभाविक रूप से विकसित प्राकृत भापात्रो को सस्कृत की विकृति बता गये । प्राकृत व्याकरणकारों और अलकारशास्त्रियो द्वारा किया गया यह विवेचन स्वाभाविकता से बहुत दूर जा पडता है। ऊपर दिये गये विद्वानो के मत का फलितार्य निकालते हुए डा० नमिचन्द्र लिखते हैं। -- सिद्धहेमन्दानगासन 8ilil--'ययप्राकतम् । प्रकृति नम्वत । तत्रभव प्राकमच्यते ।। प्राकृतमर्वस्व !! प्रकते. आगत प्राकृत । प्रकृति. संस्कृतम् । दरूपक परि0 2 श्लोक 60 की व्याख्या प्रकृतन्यन नर्वमेव सम्कत योनि 1912 नजीवनी टीका । प्रकृते सन्कृतवास्तु विकृतिः प्रकृतीमता । प0 च0, ₹ 4 श्लोक 25 प्रकृते सस्ताद मागतप्राकुतम् ॥ वाग्मटानकार-2121 पी टीका टा0 नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, 13 5 7
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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