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________________ 132 विस्तृत है यह एक व्यक्ति या छोटे-मोटे समूह के भी वश की बात नहीं है कि वह समस्त शब्दो का ज्ञान प्राप्त कर यह निर्णय दे सके कि अमुक अमुक शब्द सस्कृत मे नहीं है । यही कारण है कि देशी शब्दो के विवेचन के बीच ऐसे शब्द आ गये है जो विशेषत सस्कृत के मूल तक पहुँचते हैं। इस प्रकार परम्परा मे जितने भी 'देशी' शब्दो का पाख्यान किया गया है वे सभी विवाद मे भरे हए हैं। 'देशी' शब्दो के वास्तविक स्वरूप का विवेचन पूरी पार्य-भाषा के विकास का पालोड़न करने के बाद ही किया जा सकता है। स्वरूप की दृष्टि से 'देशी' शब्द जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है प्रादेशिक शब्दों के वाचक रहे होगे । आगे चलकर धीरे-धीरे इन्हे साहित्यिक भापायो मे स्थान मिलने लगा होगा क्योकि माहित्यिक भाषाए सदैव से लोक जीवन से प्रारण और जीवनी शक्ति ग्रहण करती आयी है । इमी प्रक्रिया मे युग-युगो मे जनता के बीच प्रचलित शब्द पाक तो और अपभ्रं शो के रास्ते सस्क त कोशो और धातुपाठ आदि मे ले लिये गये होगे । इस प्रकार ग्रहण किये गये शब्दो को सस्कृत शब्दावली के बीच हूँढ पाना सर्वथा असम्भव है क्योकि इनमें सभव है कि कुछ अनार्य मापात्रो तथा मूल आर्यभापा के शब्द आ गये हो । रुद्रट के 'काव्यालकार' 2112 की टीका मे नमिसाधु ने प्राकृत की एक व्युत्पत्ति दी है, जिसमे उसने बताया है कि प्राकृत तथा सस्कृत दोनो ही की प्राचारभूत भापा प्राकृत अर्थात् मानव जाति की सहज बोलचाल की भाषा है जिसका व्याकरणिक नियमो से वहत कम सम्बन्ध है। प्रार० पिणेल नमि साव के इस मत को भ्रमपूर्ण वताते हुए इस सम्बन्ध मे सेनार द्वारा दिये गये मत का समर्थन करते हैं । 'प्राकृत भाषा की जड जनता की वोलियो के बीच जमी हुई है और इनके मूख्यतत्त्व प्रादि काल में जीती जागती और बोली जाने वाली भापा से लिये गये हैं, किन्तु बोलचाल की वे न पाए , जो वाद को साहित्यिक मापात्रो के पद पर चढ गयी सस्कृत की भाति ही बहुत ठोकी पीटी गयी, ताकि उनका एक सुगठित रूप बन जाये। पिशेल की यह महगति नमिमाधु की मान्यता से अधिक दूर नही दिखायी देती । यह वात तो सर्वथा सत्य ही है कि साहित्यिक भापाए लोकप्रचलित मापाग्रो 1. हेमचन्द्र जोगी-प्राकृत भापानी का व्याकरण हिन्दी अनुवाद, पृ0 13 2 मन अथवा आदि यायं भाषा वह है जिसके कुछ ल्प 'या' वताये जाने वाले वैदिक रूपो में मिलने हैं और जिन्हें वास्तव में नादि आयं यपने मुलदेश में, वहा मे इधर-उधर बिखरने के पहले वोलने रहे होगे। -हेमचन्द्र जोशी, वही, पृ0 14 3 हेमचन्द्र जोशी, वही पृ0 14 4. हेमचन्द्र लोगो प्राकृत भापायों का व्याकरण-हिन्दी अनुवाद, पृ0 14
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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