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________________ [ 131 शो के इन तीन प्रमुख विभाजनो के अतिरिक्त कुछ विदेशी विद्वानो ने इनके उपविभाग भी किये हैं। शब्दो की दूसरी कोटि 'तद्भवो' को दो भागो मे विभाजित किया गया । (1) सामान सस्कृतभवा (2) सिद्ध सस्कृत भवा । पहले वर्ग मे वे प्राकृत शब्द पाते हैं जो उन सस्कृत शब्दो का जिनसे वे प्राकृत शब्द निकले हैं, बिना उपमर्ग या प्रत्यय के मूल रूप बताते हैं । इनमे विशेषकर शब्द रूपावली पौर विभक्तिया प्राती है जिनमे वह शब्द व्याकरण के नियमो के अनुसार बनाया जाता है उसे ही 'माध्यमान तद्भव' कहते है। वीम्स' इसे ही श्रादि तद्भव (Early Tadbhava) कहते है । दूसरे वर्ग मे वे शब्द पाते है जो सस्कृत व्याकरण में सिद्ध मस्त रूपो से निकाले है । जैसे अर्घमागधी वन्दित्ता सस्कृत वन्दित्वा का विकृत रूप है। प्राकृत व्याकरणकाने और अन्य ग्रन्थकारो द्वारा किया गया प्राकृत शब्दो का यह विभाजन बहुत कुछ उनके पारम्परिक रूढिवादी दृष्टिकोण पर आधारित है । इनकी उ मान्यता है कि 'प्राकृत' सस्कृत से निकली है । 'तत्' शब्द के प्रयोग द्वारा उन्होंने 'मस्कृत' को हो मूल में रखा है। सस्कृत और उससे लिये गये शब्द तत्सम पौर उममे नि मृत प्राकृत दोनो के प्याकरणिक नियमो से परे रहने वाले शब्द 'देश्य' या 'देगी' पाहे गये। परन्तु यह रूढिवादी दृष्टिकोण 'देशी' शाब्दो के वास्तविक स्वरूप उनके उद्भव और विकास का ज्ञान कराने के लिये पर्याप्त नहीं है । न तो प्रान्तीय मापाए शुद्ध रूप से वैज्ञानिक प्रर्य मे 'देशी' ही कही जा सकती है और न अन्य साहित्यिक भापाए 'देशी' शब्दो की सीमा के परे ही कही जा सकती है। अब हमे देखना यह है कि 'देशी' 'गन्द वास्तविक रूप मे है क्या ? और प्राकृतो मे इनका प्रचार कैसे हुया । देशी शब्दो का स्वरूप विभिन्न मत । 'देशी' शब्दो के अन्तर्गत प्राय' विद्वानो ने ऐसे शब्द रखे है जिनका मूल सस्कृत मे नही मिलता और जो साहित्यिक भाषामो से परे सामान्य जनता के बीच युगयुगो से व्यवहृत होते पा रहे है । परन्तु इन शब्दो के विवेचन मे सभी विद्वान् अलग-अलग धारणाए रखते है । 'देशी' शब्दो का सबसे बडा कोश प्राचार्य हेमचन्द्र की 'देशीनाममाला' है यदि इसे ही ध्यान से देखा जाये तो देशी शब्दो के बारे मे एक भ्रान्त धारणा उठ खडी होती है । इसके अन्तर्गत अनेको ऐसे शब्द है जो तत्तम और तद्भव होते हुए भी देशी मान लिये गये हैं। सम्कृत भाषा का शब्द भडार प्रत्यन्त 1. फम्परेटिव ग्रामर 1137 2. पिशेल की हे0 च0 के सूत्र 111 पर टीका
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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