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[ 127 सुपरिचित ही हैं । इन शब्दो के सचयन मे आचार्य हेमचन्द्र को पर्याप्त छान-बीन करनी पडी होगी। पशु-पक्षियो तथा विभिन्न जीव-जन्तुओ से सम्बन्धित कुछ उल्लेखनीय शब्द नीचे दिये जा रहे है
पालई (1-64) - शकुनिपक्षी, पालत्थो (1-65) - मयूर, पालासो (1-61) -विच्छू आविअ , (1-76) ~ इन्द्रगोप-एक लालरग का बरसाती कीडा, प्रासक्ख ग्रो (1-67) - श्रीवद् नामक पक्षी, प्राह (1-61) - उल्क इद्द डो, (1-79) - भ्रमर, इ दगाई (1-81) - झुड मे चलने वाले कीडे, इ दमहकामुग्रो (1-82) - कुत्ता, इरमदिरो (181) - युवा हाथी, इरावो (180) - गज, इल्ली (183) - सिंह, इसयो (1-82) - रोज्झ नामक मृग, उड्डयो (1-23) - बैल, उड्डसो (1-96), खटमल, उररी (1-88) - एक पशु, उलुहतो (1-109) - कोपा, एणु वासियो (1-147) - मेढक आलेयो (1 160)- बाजपक्षी करणइल्लो (2-21), तोता, कठ (1-51) - सुअर, कणच्छरी (2 19) - छिपकली, कद्दमित्रो (2-15), भैसा या भैस, कामकिसोरो (2-30) - गधा कायचुलो ( 2-29) - जल मे रहने वाला पक्षी, कायरिउच्छो (2-30) - कोकिला, किक्किडी (2-33) - सर्प, कु तो (2-29) - तोता, कुल्हो (2-34) - सियार, कोविया (2-48), - सियारिन, खच्चल्लो (2-69) - भालू, खिखिडो (2-74) - केकडा, गड्डरी (2-84)- बकरी, गहरो (2-34) - गीध, गामेणी (2-34) - भेड, गुत्थडी (2-92) - पानी में रहने वाला जीव, गाहुली (2-89) - एक क्रूर जलचर । इसी प्रकार के और अनेको शब्द देशीनाममाला मे पग-पग पर बिखरे देखे जा सकते हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने इन नामवाची शब्दो का सकलन देश के कोने-कोने से प्राप्त सूचना के आधार पर किया था। इस वर्ग के सन्दर्भगत ग्रन्थ अव अप्राप्त हैं । अत इनके प्रयोग स्थान को निर्धारित कर पाना भी एक दुरूह कार्य है । शब्दो के स्वरूप को देखकर, मात्र इतना ही कहा जा सकता है कि ये युग-युगो से प्रशिक्षित ग्रामीण जनता के बीच व्यवहत होते आये शब्द है । राजनीति और शासन व्यवस्था :
इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाली शब्दावली प्राचीन भारत की शासनव्यवस्था से सम्बन्धित है । इसे तत्कालीन गुजरात की शासन व्यवस्था से भी सर्भित किया जा सकता है । देशीनाममाला मे राजा के लिए उम्मल्लो (1-131) शब्द का व्यवहार हुआ है । एक शब्द "आयासतल" (1-72) मे राजा के निवास स्थान "राजमहल" का भी सकेत किया गया है। महल के दरवाजे पर रहने वाले द्वार-रक्षक के लिए कडअल्लो (2015) शब्द आया है । राजा का राजमहल नगर के मध्य मे होता था। नगर प्रधान के लिए कउग्र (2-56)शब्द आया है। पूरे नगर मे छोटी और बडी सडको का निर्माण कर सचार व्यवस्था की जाती थी। देशीनाममाला मे नगर के लिए कोट्ट (2-45) तथा सडक के लिए किलणी (2-31) और खु खुणी (2-76) शब्द आये हैं। छोटी सडक के अर्थ मे छेडी (3-31) शब्द का व्यवहार हुआ है । चौराहे के लिए "जघाछेग्रो' शब्द पाया है। नगर के बाहर चारो ओर जल से भरी खाई का प्रचलन अतिप्राचीन है। इसके लिए "खाइमा (2-73) शब्द व्यवहृत हुआ है । नगर के मध्य बाजार के लिए कव्वाल (2-52) शब्द पाया है । राज्य की सीमा के लिए सदेवो (8-7) शब्द का प्रयोग हुआ है।
पूरे राज्य का शासन अलग-अलग ग्रामाधिपतियो के हाथ मे रहता था।