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________________ 128 1 ग्रामाधिपति का अर्थ देने वाले, खरिंगग्रो (2-69) गामउटो, गामगोही, गामगी (2-89), गोहो (2-89), जणउत्ती (3-52), संग्रालो (8-58), मेट्टी (8-42) श्रादि कई शब्द पाये है। प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था में ग्रामग्रायुक्त का महत्त्वपूर्ण स्थान है । देणीनाममाला के समाज और उसमे पायी शासन व्यवस्था में सर्वत्र ग्रामाधिपति या ग्राम प्रायुक्त का ही वाल-वाला है। एक स्थान पर छल से ग्रामाधिपति का पद धारण करने वाले व्यक्ति को "गामगेडी" ( 2-90) कहा गया है। राज्य-गासन की सुविधा के लिए कई ग्रामो का एक संघ बना दिया जाता था। इम ग्राम मय के लिए "करो (1-143) गब्द पाया है। ग्रामाधिपति इसी सघ का प्रमुख अधिकारी होता था। प्रत्येक गाव की मीमा एक सीमाकाप्ठ गाड कर अलग कर दी जाती थी, इसके लिए खोडो (2-80) शब्द पाया है। एक अलग गाव के लिए गामहरा (2-90) तथा गाव मे रहने वाले लोगो के लिए जग्लवियो (3-44) श द आये है । गाव के शामक को मुग्विया कहते थे । इसके लिए भी दो शब्द अइरः (1-16) और प्रोग्रामो (1-166) आये हैं। इन शब्दो के माध्यम में व्यक्त होने वाली ग्रामव्यवस्था या राज्य शासन व्यवस्था प्राचीन भारत की राज्य-व्यवस्था व ग्राम व्यवस्था से पर्याप्त साम्य रखती है। युद्ध या सुरक्षा सामग्री प्राचीन भारत के लिए युद्ध आये दिन, होने वाली वस्तु थी । देणीनाममाला मे युद्ध के लिए ग्राउर (1-65) और खम्मक्खम्मो (2-79) शब्द पाये है । युद्ध में विपक्षी शत्रु के लिए कली और करलोलो (2-2) शव्द मिलते हैं । युद्ध मे सुरक्षा हेतु किले का निर्माण भी होता था । गढी (2-81) शब्द इमी किले का वाचक है । युद्ध में धनुप-बारा और तलवार का व्यवहार होता था। इस कोण मे धनुप के लिए गडीव (2-84) तथा तलवार के लिए टको (4-4) एव अप्पो (1-12) शब्द आये है युद्ध में पकडे गये कैदी मे लिए अवयढिय (1-46) पद व्यवहृत हुअा है । युद्ध में होने वानी पराजय के लिए अहिलिग्र (1-57) तथा पराजित व्यक्ति के लिए अक्कत (1-16) शब्द पाये है। राजनीति एव शासन व्यवस्था से सम्बन्धित ऊपर दी गयी शब्दावली प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था से सवद्ध हैं । तत्कालीन गुजरात भी बहुत कुछ इसी व्यवस्था को प्रश्रय देने वाला था, अत इन शब्दो का सम्बन्ध तत्कालीन गुजरात की राजनीति एव जामन व्यवस्था से भी स्थापित किया जा सकता है। इस प्रकार की जब्दावली "प्राचीन इतिहाम" विषय के अनुसधित्सुग्रो के लिए पर्याप्त उपयोगी है। निफर्ण - ऊपर "दणीनाममाला" की सास्कृतिक शब्द सपत्ति का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जा चुका है। इन शब्दो के माध्यम से जिस सस्कृति का परिचय मिलता है, वह युग-युगो से चली आने वाली भारतीय निम्न तथा निम्न मध्यवर्गीय मस्कृति है। इसका किमी युग विशेप से सम्बन्ध स्थापित कर पाना एक असभव कार्य है । देशीनाममाला की सास्कृतिक शब्दावली इतनी विशाल है कि इसका अध्ययन एक अलग ही जोष प्रवन्ध का विपय हो सकता है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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