SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 123 4.16. गिडो 4-25 परेप्रो 6-12, मरुनो 6-114 । असुर या राक्षस के लिए पुरिल्नदेवो 6-55, जग्गोहणो 3 43 । दानव के लिए अयक्को, प्रयगो 1-6 । प्रेतिनी के लिए उग्ररी 1-981 डाकिनी के लिए सेग्रणिया 7.12 तथा लामा 7-21 । "देशीनाममाला" का एक गन्द अत्यत चौका देने वाला है । धम्मो5-63 । ऐने पुरुष के वाचक शब्द के रूप मे यवहन हुआ है जिसे चामुण्डा को पनि दी जाने वाली है। यह शब्द भारत में बत प्राचीनकाल से प्रचलित नर बलि फा मकेत देने वाला है । प्रायनर जातियो द्वारा प्रतिपादित विशिष्ट धार्मिक प्रनु उपनो में नरबलि दी जाती थी, इसके अनेको प्रमाण ढू ढ जा सकते है । यह मन्द भी इस कृत्य की प्रामाणिकता को द्योतिन करने वाला है । ऊपर उल्लिवित बाधक दुप्टात्मानो तथा बुरे ग्रहो से सामान्य रूप से लोग भयभीत रहते थे- इसका नकेन अहिमिय 1-30 में मिलता है । इसका अर्थ प्रेत या ग्रह वाघालो ने उर कर रोना है । धार्मिक जीवन को अभिव्यक्ति देने वाले अन्य शब्द इस प्रकार हैं -ऐराणी 1-47 - भक्ति में लगी हुई स्त्री। कन्दल 2-4 - कपाल । करक - 2-17 भिक्षा पात्र । चोरली - 3-19 - श्रावण कृष्ण चतुदर्शी को किया जाने वाला व्रत विशेष । छिप्पती, छिप्पटी 3-37 - एक धार्मिक व्रत। दुक्कर - 5-42 - माय के महीने में बहत प्रात ही किया जाने वाला धार्मिक स्नान । भूअण्णो - 6-107 - जोते हए खेत मे किया जाने वाला यज्ञ। महालवक्खो -6-127 -क्वार का श्रादृपक्ष । जनवरत्ती (यक्षरानि), 3-43 - दीपावली का त्यौहार । मायदी 6-129 - श्वेतवस्ना सन्यासिनी ।। वत्यी 7-31 आश्रम । विडकिया - 7-67यज्ञ-वेदी । सण्णोज्झो 8-6 - एक यज्ञ विशेप इसका अर्थ धन के अधिपति कुबेर का नेवक भी है । हो सकता है यह यज्ञ भौतिक समृद्धि (धन-धान्यादि) के लिए किया जाता रहा हो । सारी - 8-22 - ऋषिपीठ - यह ऋपियो के रहने और अध्ययन अध्यापन तथा धार्मिक चिन्तन का स्थान रहा होगा । साइन - 8-25 - सस्कार या शिक्षा । अाज भी कोई शुभ कार्य करने के पहले या यात्रा पर जाने के पूर्व किसी ज्ञानी से लोग “साइत" पूछते है। इन दोनो शब्दो मे थोड ही अर्थ परिवर्तन के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है । 1. इस शब्द का व्यवहार सम्गवत श्वेताम्बर सप्रदाय मे दीक्षित जैन धर्मावलविनी महिला के लिए किया जाता रहा होगा।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy