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उत्सव के लिए णवलया (4-21) शब्द पाया है ।।
इस कोश मे सकलित कुछ रीति-रिवाज सूचक शब्द भी उल्लेखनीय हैं। एमिणिया (1-145) शब्द ऐसी स्त्री का वाचक है, जो अपने शरीर को सूत से नाप कर उस सूत को चारो दिशामो मे फेंकती है। यह सम्भवत किमी प्रकार की अभिचार क्रिया रही होगी जिसे करने वाली स्त्री समाज मे अत्यत पतित समझी जाती रही होगी । आणदवडो (1-72) शब्द का अर्थ है जिसका विवाह छोटी अवस्था मे हो जाय, वह स्त्री जव प्रथम वार रजस्वला हो उसके रजोलिप्न वस्त्र को देख कर पति या पति के अन्य कुटुम्बी जो प्रानन्द प्राप्त करते हैं, वह आनन्द इम शब्द से व्यक्त होता है। खिखिरी और झज्झरी ( क्रमश: 2-73 और 3-34) शब्द ऐसी छडी के वाचक हैं, जिसे चाण्डाल कहे जाने वाले व्यक्ति अपनी अस्पृश्यता का सकेत करने के लिए, लिये रहते थे । इसी प्रकार 'शवर' जाति के लोग अपने सिर पर पत्ते का दोना (टोपी की भाति) रखकर चलते थे इसके लिए ईसिग्र (1-84) शब्द व्यवहृत हया है। पुलिन्द जाति के लोग भी इसी प्रकार का दोना सिर पर रखकर चलते थे । इनके सिर पर रखे हुए दोने के लिए पत्ती, पत्तपसाइपा, तथा पित्तपिसालस (6 -2) तीन शब्द आये हैं।
इस प्राकृत कोश मे कुछ खेलवाचक शब्द भी सकलित हैं। इन शब्दो से उस काल के खेल विपयक मनोरजन के साधनों पर पर्याप्त प्रकाश पडता है । श्राखो को थका देने वाले फिर भी अत्यत प्रिय लगने वाले खेल को गदीणी (2-83) कहा गया है । लुकाछिपी के खेल के लिए प्रोलु की (1-153) शब्द आया है। ऊना-पूरा या मुट्ठी मे पैसे लेकर अन्य व्यक्ति से उसकी सम या विषम संख्या के बारे मे पूछना अ वेट्टी (1-7) कहलाता था । एक पैर से चलने वाले खेल को हिचय तथा हिविन (6-68) कहा गया है।
इन विभिन्न उत्सवो और रीति-रिवाजो से सम्बन्वित शब्दो को देखकर जिस सास्कृतिक चित्र की कल्पना मस्तिष्क मे उभरती है- वह प्राचीनकाल से प्रचलित विभिन्न सस्कृतियो का मिश्रण मात्र है। आचार्य हेमचन्द्र ने इस कोश का सकलन
1. इमी उत्सव से मिलता जलता उत्सव भादो के महीने में कजरी तीज के अवसर पर अव भी
सम्पन्न होता है। उत्तर-प्रदेश के पूर्वी जिलों में इस दिन ससुराल से लौटकर आयी हई नवविवाहित कन्याए अपने पतियों का नाम लेती हैं। परन्तु इसमे मार-पीट जैसी कोई बात
निहित नहीं होती। 2. 'पुलिन्द' जाति अत्यत प्राचीन है। 'शुन शेप वाख्यान में (जो कि ब्राह्मण साहित्य का
प्रसिद्ध और प्राचीन आख्यान है) इन्हे विश्वामित्र के निष्कासित पुत्रो के रूप में उल्लिखित किया गया है । सास्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से यह शब्द इस कोश के शब्दो की प्राचीनता सिद्ध करने को पर्याप्त है।