SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 119 ची -इमे रहर' भी कहते है। गावों में यह मिचाई का आमान और बहुप्रचलित उपकरण है। दुपकुपरिणा-5-48- उगालदान, दुद्धिणिया - 5-54 तेलहडी (मिट्टी की बनी हुई तेल रखने की हाडी), पच्चूढ तथा परियली 6-12- थाली पोत्ती -7-70- शीशा या कार, बोहरी -6-97- झाडू, पूरण 6-56- सूप ।। इन नित्य प्रति की प्रयोग योग्य घरेलू वस्तुप्रो के अतिरिक्त कुछ गृह उद्योगो से सम्बन्धित शब्द भी आये हैं । ऐसे उद्योगो मे कपडा बुनना और लोहे के छोटे-मोटे काम प्रादि है । कपडे की बुनाई से सबद्ध-पूरी 6-56- जुलाहे का यत्र, ततुक्खोड्डी 5-7- कपडा बुनने की मशीन का एक यंत्र विशेष, पलस 6-70- कपास का फल, पलही 6-4 सई इत्यादि शब्द कहे जा सकते है । एक जगह पूणी 6-56- पूनी (रूई की बनी हुई) का उल्लेख देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे हाथ से सूत कातने का कार्य भी लोग बहुत पहले ही से जानते रहे हो। इस शब्द का सबध तत्कालीन गुजरात के जीवन मे भी हो सकता है। गावी जी ने इस कला पर बहुत जोर दिया था इसका कारण, हो सकता है-गुजरात के जन-जीवन मे प्रचलित इस व्यवसाय की प्रसिद्धि ही रही हो। लोहे के धन्धे से सम्बन्धित पवद्ध 6-11- लोहे का धन शब्द पाया है। सामाजिक उत्सव एव खेलकूद 'देशीनाममाला' मे विभिन्न सामाजिक उत्सवो से सम्बन्धित कई शब्द आये है। ये उत्सव अपने आप मे बहुत वडी सास्कृतिक महत्ता छिपाये हुए हैं। आषाढ मास मे गौरी पूजा के अवसर पर होने वाले उत्सव को भाउ 6-103, श्रावणमास मे शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को होने वाले उत्सव को वोरल्ली 7-18, भादो मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाये जाने वाले उत्सव को डुरिया 4-45, कार्तिक के कृष्ण पक्ष मे सम्पादित होने वाले महोत्सव को महालक्खो 6-127, कातिकमास की शरत्पूर्णिमा पर होने वाले उत्सव को पोग्रालयो 6-18! कहा जाता था । इस उत्सव के अन्तर्गत पति-पत्नी के हाथ से मीठे 'पुयो' का भोजन करता था । माघ के महीने मे एक उत्सव मनाया जाता था जिसमे ईख की दातून की जाती थी। इसे अवयारो (1-32) कहा जाता था, वसतागमन पर होने वाले उत्सव को फग्ग (6-82) कहते थे। एक अन्य उत्सव पर नव दम्पत्ति एक दूसरे का नाम लेते थे इसे लय (7-16) कहा जाता था। एक ऐसे उत्सव का उल्लेख हुआ है जिममे तमाम स्त्रियां एकत्र होती थी। इनमे से प्रत्येक अपने पति का नामग्रहण करती थी, जो स्त्री अपने पति का नाम न ले पाती थी उसे सभी मिलकर पलाश की डाली से पीटती थी। इस
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy