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1187 ग्रामीण जीवन के लोग श्रमजीवी होते हैं। बहुत प्राचीनकाल से ही वे अपनी गृहस्थी में प्रयोग योग्य वस्तुओं को स्वय ही तैयार करते रहे हैं। उनके जीवन मे मशीनो को बहुत कम स्थान मिला है। खाने-पीने की वस्तुप्रो को तैयार करने में वे तरह-तरह के उपकरण प्रयोग मे लाते हैं । ऐसे कुछ उल्लेखनीय उपकरण इन प्रकार हैं
प्रवहडं- 1-32- मूसल-यह लकडी का बनता है । इसके निचले किनारे पर लोहे की साम (कची-2-9) लगी होती है । यह ध्यान की कुटाई मे काम आता है, कुटाई में एक और भी उपकरण की आवश्यकता पडती है जिसे 'काडी' कहते हैं । यह पत्थर' या लकडी की बनती है । इस कोश मे लकडी की बनी हुई 'काडी' के लिए प्रायर -1-74 शब्द प्रयुक्त है। इन दो उपकरणों के अतिरिक्त कुटाई मे काम पाने वाला एक अन्य उपकरण 'रोखली' है। इसके लिए यहां उक्वली 1-88 शब्द पाया है । यह शब्द थोडे ब्वनिपरिवर्तन के साथ अाज भी प्रचलित है। इनी तरह गन्ने और तल की पेराई में काम आने वाला उपकरण कोल्हुमो 2-65- कोल्हू है । यह प्राय पत्थर का होता था। यह शब्द भी 'कोल्ह' के रूप मे थोडे ध्वन्यात्मक परिवर्तन के साथ ज्यो का त्यो उनी अर्थ मे प्रचलित है।
अन्य घरेलू वस्तुत्रो मे क्दारी 2-4- छुरी, कडच्छु 2-7- करछुल, कडतला2-19- हंसिया (अनाज की फसल आदि काटने मे काम आने वाला अर्द्धचन्द्र आकृति का लोहे का बना हुप्रा उपकरण विशेष), कडनर -2-16 पुराने भूप आदि उपकरण कडमग्र -2-20- एक वर्तन, कमढ 2-55- दही रखने का पात्र कमणी -2-8- मीढी करल -2-4- पानी का बर्तन, कलवू 1-12- लोकी का वर्तन, कोडिन -2-47- छोटा करवा ( इसे अववी में 'परई' भी कहते हैं -यह मिट्टी की बनायी जाती है ) गायरी, गोपा तथा गरगरी 2-99- गगरी (मिट्टी का बडा- जो आज भी गावो मे पीने का पानी रखने और अनाज इत्यादि भर कर सुरक्षित रखने के काम मे आता है) गोली 2-95- मथानी- यह लकडी की बनायी जाती है और छाछ विलोने के काम मे आती है, दुवो -4-11- नारियल का बना हुया पात्र-यह पात्र बड़े वर्तनो मे मे दही और मा प्रादि द्रव पदार्थों को निकालने के काम में आता है 'अवधी' में इसे 'नरियरी' कहा जाता है, वेंकी-4-15- ढंकी-यह लकडी के लम्बे ठोस पटरे से बनाया गया यत्र विशेप होता है। इसकी तुलना 'मो-मा' से की जा सकती है। इसे धान कूटने को काम में लाया जाता है। शब्द को देखकर ही पता चल जाता है कि इसमे किसी भी प्रकार का भाषा वैज्ञानिक परिवर्तन नहीं हुआ है। यह ज्यो का त्यो अपने प्राचीन स्वरूप और अर्थ मे आज भी व्यवहृत होता है । लिच्ची 4-44 पानी निकालने की
1. पत्यर फी बनी हुई काही के लिए नवो वया अवजण्णो 1-26, दो शब्द व्यवहृत हुए हैं।