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________________ 1101 हुए वस्त्रो को ही साटियो के नीचे पह्नती रही होगी । आज भी गांवो की। स्त्रियो के पहनावे मे इन अधोवस्त्री का प्रयाग देखा जा सकता है। वहा-स्त्रिया प्राय: मोटे कपड़े पहनती हैं । जब कभी उन्हें पतले या झीने वस्त्र पहनने पढते हैं वे आज भी नीचे पर्दे के लिए बिना सिले हुए वस्त्रो का प्रयोग "टीकोट" के स्थान पर करती हैं । यह पहले ही बताया जा चुका है कि देशीनाममाला के शब्दो का वातावरण प्रायः ग्रामीण है। ऐसी स्थिति मे बहा उल्लिखित पहनावे का अाज भी ग्रामीण वातावरण में प्रचलित होना श्राश्चर्यजनक नहीं है। आज भी ग्रामीण स्त्रिया माढी प्रादि अधोवस्त्री को कमर में टिकाए रखने या खोसने लिए तागे की करधनी (मेग्वला) धारण करती है । इस कोश में कई शब्द इम करबनी के वाचक हैं जैसे - प्रतरिज्ज 1-35, दागे 5-38, सपा 8-2 इत्यादि । माही और पेटीकोट के अतिरिक्त स्त्रिया घाघरा और दुपट्टा भी वारण करती थी । इसका सकेत कोश मे सकलित इन दोनो के वाचक शब्दो से मिलता है । घाघरे के लिए घग्घर 2-107 शब्द प्रयुक्त हुआ है । उत्तरीय या दुपट्टा के लिए अहोरण 1-257 शब्द प्रयुक्त हुअा है । उत्तरीय या दुपट्टे के लिए उट तरण 1-1037 श्रोड्ढण' 1-1557 आदि पादो का भी व्यवहार हुग्रा है। स्त्रियों में पर्दा की भी प्रया थी यह “घृघट" के अर्थ में आये हुए कण्णोढिया 2-20 शब्द मे स्पष्ट है । इनके अतिरिक्त स्त्रियो द्वारा घारा किये जाने वाले वस्त्रो मे कठकु ची 2-18 एक ऐसा वस्त्र था जिसे गले में लपेट कर गाटे दे दी जाती थी। यह शब्द उम बम्ब की गाठ के अर्थ मे ही प्रयुक्त हुग्रा है । यह वस्त्र सम्भवत पुरुप भी धारण करते रहे होंगे, परन्तु इसका स्पाट मकेत अन्य मे कहीं भी नही मिलता है । रमाल के अर्थ मे दत्यरो 5-34 गब्द देखकर ऐना प्रतीत होता है जैसे रूमाल का प्रयोग स्त्री और पुष्प समान रूप से करते रहे हो । आज भी माधारण लोग इसे "दस्ती" के रूप में जानते हैं परन्तु यह नाम तो स्पप्ट ही फारसी से लिया गया है। __ जहां तक पुरुपो के पहनने के वस्त्रो का सम्बन्ध है कोई विशेष उल्लेखनीय शब्द नहीं पाये हैं । पुरुप दाडी मूछ सफाचट रखते तथा मस्तक पर तिलक लगाते ये । इस बात का मकेत शब्दो के माध्यम से मिल जाता है। अवनक्विन 1-40 दाढी मृ छ से सफांचट चेहरा, खड्ड 2-77 तथा मासुरी 7-130 इस बात का सक्त देने वाले शब्द हैं । दाढी मूछे तथा लम्बे-लम्वे वालो के रखने का सकेत भी प्रयुक्त शब्दो के माध्यम से मिल जाता है । मस्तक पर लगायी जाने वाले तिलक के वाचक 1. यवधी तथा हिन्दी की लगभग सभी प्रसिद्ध बोलियो मे यह शब्द आज भी 'योढनी' के रूप में विद्यमान है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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