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सुन्दर वस्त्र धारण करते रहे होगे । मोटे कपडे के लिए करयरी (2-16) पतले और सुन्दर कपडो के लिए कासिन पोर किण्ह (2-59) शब्द आये है । सिल्क के वस्त्र के लिए किमिहरवसण (2-33) प्रयुक्त हुग्रा है । कई जगह लाख इत्यादि पदार्थो से रगे गये वस्त्रो का भी उल्लेख हुआ है। किमिराय (2-32)-लाख से रगा हुआ वस्त्र, घट्टो (2-11)- लाल कुमुम्भीवस्त्र, पोमर (6-63) - कुसु भी रग का वस्त्र । इसके अतिरिक्त कई प्रकार के वस्त्रो का उल्लेख मिलता है जिनके बारे में स्पष्ट कह पाना बहुत ही कठिन कार्य है ऐसे शब्दो मे औहसिन (1-173), असगय (1-34) टिडिल्लिन (4-10), रिणअसण तथा रिणअषण (4-39), दुल्ल (5-41), माहारयण (6-132), साहुली (8-52), होरण (8-72) आदि । ये सभी वस्त्रो के प्रकार के रूप में उल्लिलित है । इनका स्पष्ट विवेचन अन्य मे कही भी उपलब्ध नहीं है। एक स्थान पर एक शब्द के द्वारा वस्त्रादि को सुगन्वित बनाने वाली किसी मशीन का उल्लेख हया है। उसके लिए सीहलय (8-34) शब्द प्रयुक्त हुआ है । इस तरह की वस्तुए बहुत प्रगतिशील और समृद्ध समाज का चित्र उपस्थित करती हैं । इन विलासिता के द्योतक शब्दो के अतिरिक्त कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिनसे तत्कालीन निम्नस्तरीय रहन सहन के लोगो का परिचय मिलता है । इस कोश मे अत्यन्त गरीब जनता द्वारा पहने जाने वाले फटे चीथडे व चिन्दियो लगे वस्त्र का भी उल्लेख है । इसके लिए "डड (4-7)- सुई से सिया गया चीथडा तथा रिंडी (7-5) - चीथडा वस्त्र दो शब्द आये है।"
इन विशिष्ट और सामान्य वस्त्र सम्बन्धी उल्लेखो के अतिरिक्त रित्रयो द्वारा धारण किये जाने वाली विविध वेप-भूपायो का उल्लेख भी मिलता है। पहनावे के वस्त्रो से सम्बन्धित उल्लेखो को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे स्त्रिया प्राय. साडी पहना करती थी। साडी की गाठ जिसे "नीवी" कहा जाता है, से सम्बन्धित कई शब्द इस कोश ग्रन्थ मे सकलित है जैसे - उच्चोलो 1-131, अोवड्डी 1-51, जण्हली 3-40, कुऊल 2-38, वजर - 741 ये सभी शव्द स्त्रियो द्वारा पहिने जाने वाले अधोवस्त्र की गाठ के वाचक है। इससे यह सकेत मिलता है कि स्त्रिया प्राय साडी जैसा वस्त्र ही पहनती थी । साडी के नीचे "पेटीकोट' कहे जाने वाले वस्त्र का पहिनना आजकल सामान्य है। इसके भी कई वाचक शब्द इस कोश मे सकलित है। अन्तर केवल इतना है कि शब्दो के माध्यम से जिस पेटीकोट का प्राशय निकलता है वह आकार मे छोटा लगता है और लगभग घुटने तक रहता रहा होगा । पेटीकोट से सम्बन्धित ये शब्द हैं- अवनच्छ 1-12, चिफुल्लणी 3-13, जहणसव 3.45, कूवल 2 43, दुण्णिप्रत्थ 5-43 आदि ।
इन अधोवस्त्रो के विवरण को देखकर ऐसा लगता है जैसे स्त्रिया बिना सिले