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________________ [ 107 विलासितापूर्ण रहन-सहन के स्तर को व्यक्त करते है तो दूसरी ओर झोपडियो के दुखी जीवन तथा निम्नवर्ग के अघ पतन युक्त रहन-सहन का भी चित्र उपस्थित करते है । सबसे पहले उच्च रहन-सहन से सम्बन्धित शब्दो का विवेचन उपयुक्त होगा। उच्च रहन-सहन के लोगो के घरो को आसवरण 1-66 कहा जाता था जो पाराडी 1-75 चित्रो से सजे हुए होते थे। इन वासगृहो मे शयन कक्ष अलग होते थे। इनके लिए ग्रालयण -1-66, पासगो 1-71, सोवरण 8-58 शब्द आये हैं । इन वासगृहो मे सुण्ठप्रकाश व्यवस्था रहती थी, इस बात का सकेत आलीवर्ण 1-71प्रकाशकारक ( पदार्थ विशेष) से स्पष्ट है । इन विलास गृहो के सबसे ऊपरी भाग का कमरा चन्द्रशाला कहलाता था-इसके लिए जालघडिआ 3146 शब्द पाया है। घरो मे खिडकिया होने का सकेत चुप्पाल ग्र 3-17 से मिलता है, पारावारो 6-43 गवाक्ष के अर्थ मे आया है। इन घगे के सामने विस्तृत द्वार होते थे इसका सकेत मित्त 6-110 और भित्तर 6-105-द्वार, शब्दो से मिलता है। इन घरो की सीमा मे फूलो से युक्त छोटे-छोटे उद्यान भी होते थे। इसका सकेत मयड (6-115) तथा वयड 7-35- (बगीचा) से मिल जाता है। इन वासगृहो मे रहने वाले लोग विला. सितापूर्ण जीवन विताते थे। इस बात की पुष्टि विलास सामग्रियो के लिए आये हुए शब्दो से हो जाती है । इन विलास सामग्रियो का उल्लेख इन शब्दो मे देखा जा सकता है ग्रामलय-67- सज्जागृह, जच्चदरण 3-52- अगरु (एक सुगन्धि द्रव्य-विशेप) मलाकु कु म 6-132- प्रधान कुकुम, लावज 7-21 उशीर या खस, बहू 7-31- एक सुगन्धित द्रव्य, गुप्पत 2-102- बिस्तर या पलग, विभण 7-69- ताकिया, थुड्डहीर 5129- चामर, डोगी 4-13- शरीर को सुगन्धित करने वाला एक द्रव्य, फसल 6-87- शरीर मे लेप करने का सुगन्धित चूर्ण, आदि। इन सभी विलासिता की वस्तुओ के अतिरिक्त इस वर्ग के लोगो मे मद्यपान का भी बहुत अधिक प्रचलन रहा होगा क्योकि मद्य और उससे सम्बन्धित पात्रो तथा व्यापारियो का उल्लेख इस कोश के अनेको शब्दो मे हुआ है । भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्रो और आभूषणो के लिए पाये हुए शब्द भी नागरिको की विलासिता और उनकी समृद्धि का द्योतन करते हैं । इनका उल्लेख आगे एक अलग शीर्षक के अन्तर्गत किया जायेगा । __ इन सुसज्जित और विलासितापूर्ण प्रावासो से अलग साधारण जन-वर्ग के रहन-सहन को सूचित करने वाले शब्द भी आये हैं । साधारण रूप से बने हुए घर के लिए घघ 2-105 तथा कुटी के लिए इरिआ'1-80 व चिरिया 3-11 खुल्ल) 2-74 शब्द आये है । एक जगह तम्बू के लिए उल्लोचो 1-98 शब्द भी आया है ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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