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कोश मे दू हे जा सकते हैं । माता-पिता, भाई-बहिन, पति पत्नी, पुत्र-पुत्री, प्रपौत्र, नववबू इत्यादि शब्द पारिवारिक धारणा कोपुष्ट करने वाले हैं। इस कोश मे माता के लिये अत्ता (1-51) अल्ला, अब्बा (1-5) भादलिया (6-131), पिना के लिए अप्प (1-6), वहिन के लिए अक्का, भाभी के लिए माउज्जा (6-103) तथा वहुण्णी (7-41) पत्नी के लिए वणिया (5-58) वणी (5-62), धार्मिक गृहणी के लिए भावइया (6-104) पिता की बहिन अर्यात् बुप्रा के लिए पुप्फा (6-52), मा की बहिन या मौसी के लिए मालिया (6-131), ज्येष्ठ वहिन के पति (जीजा) के लिए भायो (6-102), मामी के लिए फेलाया (6-85), मम्मी (6-112), मल्लारणी (6-112) तथा माम (6-112), साली के लिए मेहुरिणग्रा (6-148)। देवर के लिए अण्णय (1-55), एक्कघरिल (1-146), दुइमो (5-44) । देवरानी के लिए अण्णी (1-55) | नववधू के लिए अविनज्मा (1-77), कोला (2-33), कुकुला (2-33)। पौत्र के लिए खरहिन (2-72) ।
इन पारिवारिक सम्बन्यो को द्योतित करने वाले शब्दो के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी शब्द आये हैं जिनसे पारिवारिक रीति-रिवाजो पर भी प्रकाश पडता है। वहुमासो 7-46 ऐमा ही शब्द है । इस शब्द का आशय उस कालावधि से है जिसमे विवाह के वाद वर और वधू को मिलकर कही एकान्त मे रहने का अवसर दिया जाता है । अग्रेजी के हनमून' शव्द से इसकी तुलना की जा सकती है। यह कालावधि पूरी की पूरी, वर के द्वारा, वधू की इच्छा पर वितायी जाती थी । वर या दुल्हे के लिये इसमे वरडत्त, 7-44 शब्द मिलता है। विवाह के पहले कुमार युवक के लिए ठ (7-83) पाया है। विवाह के समय वधू रूप में मजी हुई कन्या अइरजुवड (1-48) अोलपणी (1-160) कही जाती थी। श्वसुर के घर ने अपने पिता के घर लौटकर गयी व पथुच्छ्हणी (6-35) कही जाती थी। वव को दोबारा पिता के घर से श्वसुर के घर ले जाने वाला व्यक्ति पाडिअज्झ (6.43) कहा जाता था। वधू की छोटी सास के लिए वहुवा (7-40) तथा ऋतुमती स्त्री के लिए परिहारइत्तिया (6-37) शब्द आया है। पूरे परिवार के लिए पहरण (6-5) शब्द व्यवहत है । एक जगह कुमारी कन्या से उत्पन्न होने वाले अवैध पुत्र को भी चर्चा है उसके लिए ड दमहो' (1-81) शब्द आया है । रहन-सहन रीति-रिवाज तथा वेष-भूषा व खानपान रहन-सहन
'देशीनाममाला' के शब्द एक ऐमे ममाज का चित्र प्रस्तुत करते हैं जो रहनसहन में काफी ऊचा और सम्पन्न मालूम पडता है । इसके शब्द एक ओर यदि
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अवन्तिसुन्दरी ने इस शब्द का अर्थ 'कुमारी' क्यिा है न कि कोमार (कमारी से उत्पन्न पुन्न) हेमचन्द्र स्वयं ही वृत्ति (1-81) मे इसका उल्लेख करते हैं।