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कार किया जाना चाहिए । विषयवस्तु को देखते हुए तो यह कोशग्रन्य 'बज्जालग्ग' से भी समानता रखता है। 'वज्जालग्ग' की भाति इसमे भी विषयगत विविधता का दर्शन किया जा सकता है। यदि कुछ शब्दो मे हेर फेर दिया जाये तो 'वज्जालग्ग' की निम्न उक्ति देश्यवहुल 'रयणावली' के पद्यो पर घटित हो सकती है
देसिय सद्दपलोट महुरक्खरछदसठिय ललिय ।
फुड वियडपायडत्य पाइअकव्व अग्रव्वम् ।। प्राकृत-काव्य की इस प्रशस्ति मे यदि देश्य शब्दो की प्रचुरता का ममावेश कर दिया जाये तो निश्चित ही 'रयणावली' की गाथाए भी इसके अन्तर्गत आ जायेंगी।
अस्तु ! सक्षेप में यह कहा जा सकता है कि 'रयणावली' भाषाशास्त्र की हो। दृष्टि से नही साहित्यिक दृष्टि से भी एक उच्चकोटि का कोश ग्रन्य है।