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________________ [ 95 ने हेमचन्द्र के इन पद्यो की तुलना भर्तृहरि के नीतिशतक के पद्यो तथा सस्कृत के विविध कवियो द्वारा लिखे गये सुमापित सग्रहो से की है। यह बहुत कुछ ठीक भी है । 'रयगावली' के इन पयो में सस्कृत के नीतिपरक पद्यो के समान ही लोकजीवन को बहुमूल्य एव लाभप्रद उक्तिया निवद्ध है। अति प्राचीन प्राकृत काव्यसग्रह 'बज्जालग' मे भी इस प्रकार के पद्यो की कमी नहीं है। 'रयणावली' के इस कोटि के कुछ पद्यो का विवरण प्रागे दिया जा रहा है । एक पद्य में कवि लोक-जीवन के सुचारु रूप से चलने में बाधा उत्पन्न करने वाले तत्त्वो का उरलेख करते हुए कहता है सरिमाण अग्गवेप्रो प्रदसणातहय अप्पगुत्ता य । - दूमन्ति झत्ति लोत्र अहिप्रारविरोहिणो हि खला ।। "नदियो की वाढ, चोर तथा केवाच, लोगो को शीघ्र ही परितापित करते है। (सच है) खल (नीच लोग) लोक यात्रा-विरोधी होते ही है।" इन्भाणमिरिणमिक्क्स मिद्दण्डाण गयाण इ गाली । इग्गाण य माभेसीसदी हरिस समुबहइ ।। 1161179।। "वणिक के लिए मोना, भ्रमर के लिए कमल, गज के लिए ईख, डरे हुए के लिए 'मत डरो' का शब्द हर्ष का उद्वहन करने वाले होते है।" एक पद्य मे हेमचन्द्र सामाजिक रूढियो का उल्लेख करते हैं कि परम्परा प्रिय भारतीय समाज निकृष्ट से निकृष्ट जीवो को भी मान्यता दे सकता है, परन्तु कुमारी स्त्री से उत्पन्न हुए अवैध पुत्र को नही । कुछ पद्यो मे कवि ने एक साथ ही कई-कई सामाजिक तथ्यो का उद्घाटन किया है। जैसे-~ जयणेहि हया गामा जगाहि कणा-य जभभावेण । महिलामो जोहलीहि सहन्ति गेहा जरड जच्चेहि ।। 3131140।। 'लगाम से घोडे, गोचर भूमि से गाव, तुष से अनाज, नीवी से महिलाए तथा बूढो और बच्चो से घर शोभा पाते हैं। ऐसे ही एक अन्य पद्य मे वे बताते है किमलाई से दही, मूठ से तलवार, गहरे पानी से कुग्रा, वीरो से विषम अवसर तथा पशुओ से ग्राम-समूह सुशोभित होते हैं ।'3 1 2 3 प्रो मुरलीधर बनर्जी-दे. ना मा की भूमिका, तृतीय खण्ड । दे ना मा 1164181 दे ना मा ,5119124
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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