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[ 93 नदी नट पर नुट रहा है ।" एक पद्य मे कुमारपाल की टिड्डियो के समान असख्य बुडसवार सेना का अत्यन्त पालकारिक वर्णन किया गया है
निरिकुमारवालणखइ तुहतुरयाघोरिणोव्व अगणिज्जा।
फवलन्ति वेरिपत्थिय वलाइ घोमालिया दलाइ व ।। 2 1 90 1111 ।
"नरपति कुमारपाल । तुम्हारे शलभ (टिड्डियो) के समान अगणित घोडे वैगे राजाओ के बल (सेन्य) को शरद मे उगने वाली लता के कोमल पत्तो की माति गनिन कर लेते है।" कुमारपाल शय रूपी पक्षियो के लिए वाज के समान है। 1 उसने कोषित होते ही शय वर्ग भागकर समुद्र के किनारे आश्रय लेता है। उसके प्रोधित होते ही तथा धनुष की टकार मान से ही शत्रु, भाग जाते है ।
इन पराक्रमपरक प्रशस्तियो के अतिरिक्त कुमारपाल की धवल कीर्ति और उसकी नमद्धि का मो अत्यन्त पालकारिक वर्णन कई पद्यो मे मिलता है । कुछ उदाहरण यहा दिये जा रहे हैं
रिणवमउडोप्पिअपयणह कित्ती तुज्झ धवलेड प्रोज्झ पि ।
ससिकुलमवाण अहवा पोलिसहावो अय कुमरवाल ।। 111161148।। 'धूलि मे मलिनमणि के समान कुमारपाल की कीति मलिन होते हुए भी प्रवल है तो या तो यह उसके चन्द्रकुल में उत्पन्न होने के कारण है या फिर कुलपरिपाटी केकारगा।' अस्थिर गति लक्ष्मी को भी कुमारपाल ने इस प्रकार धारण किया है कि वे अत्यधिक लम्पटा होते हुए भी, उसे छोडकर जा नही पाती
"उल्ललिग्रदोसतुम तह उग्गहिया कुमरवाल तइ लच्छी ।
उल्लेहडा वि जह सा ण मण्णाए अण्णमुवसेर ।। 5188110411 "कुमारपाल । तुमने शिथिल स्थिति वाली और दोपो से युक्त लक्ष्मी को भी इतनी निपुणता मे ग्रहण किया है कि अतिलम्पटा होते हुए भी वह किसी अन्य को रति योग्य नही मानती।" कुमारपाल की राज्यश्री का एक अन्य वर्णन भी उल्लेखनीय है
जयसिरिणिवासजेमण भुन तुह गुणवण्णम्मि का जोग्गा ।
जोर जसेण चालुक्क जोक्खमवहरसि जोअस्स ।। 3140148॥ "दक्षिण भुजा पर लक्ष्मी को धारण करने वाले (कुमारपाल) तुम्हारे गुणवर्णन मे चाटुकारिता क्या ? हे चालुक्य नरेश | निश्चय ही तुम्हारे यश की धवलता
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दे० ना0 मा0 81817 पही 61717 वही 6115114
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