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भूषण को उस कोटि की प्रशस्तिपरक कविता पर हेमचन्द्र जैसे प्रसिद्ध पूर्व कवियो का प्रभाव स्पष्ट ही परिलक्षित किया जा सकता है। एक स्थल पर हेमचन्द्र कुमारपाल के पगक्रम में प्रस्त, जगत मे लुकती छिपती गाग्रो की पत्नियो की तुलना छिपकली जमे टरपोक और निकृष्ट जीव से करते हैं
ग्वाइअलघणग्वारयमुहिप्राविविग्यरिकग तुहारिवह । ग्वाटइअरिणयरवेमुडरिया वारफिदिव्य लुक्केड ।। 2161173।।
"बाई प्रादि के लायने मे मुरमाए हुए मुबवाली, हाय में (अम्पृश्यता द्योतक) फटा बाम का इडा लिये, अपने ही गब्द की प्रतिध्वनि से डरी हुई रिपु बथुए छिपकली के समान लुक छिप रही हैं।" एक अन्य पद मे जगत मे भटकती हुई एव भयग्रस्त गा-गलियो का अत्यन्त मुन्दर वर्णन किया गया है--
रिमिणत्तरित्रक्रयच्छीउरकग्लिोलिमज्झरिरियायो।
मुच्छन्तिरिच्छमल्लयभीग्रा तुह कुमरबालरिटबहुप्रा 11171717॥
"रोदनशील मूजी हुई अांबी वाली-वृक्षो को पक्ति के मध्यलीन तुम्हारे शत्रुयो को वधुए गेछो और भानुग्रो के मय में मूछित हो जाती है।"
इसी प्रकार और अनेको चाटुकारिता मरे प्रशस्ति के पद "रयणावनी" मे निवद्ध हैं । यो की पतनोन्मुम्ब दशा के वर्णन के माध्यम से किमी राजा के प्रभाव
और उमके पराक्रम को व्यक्त करता भारतीय परम्पग मे पाये जाने वाले ममन्त प्रशस्तिपरक काचों की एक विशेषता रही है। हिन्दी साहित्य के ग्रादिकालीन चारणकाव्यो तथा रीतिकान में लिखे गये भूषणा ग्रादि कवियो की काव्य-रचनायो में पत्रुग्रो के अपकर्ष वर्णन के माध्यम में यात्रयदाता गजा की चाटुकारिता मरी प्रशमा की परिपाटी अति मामान्य रूप में देखी जा सकती है।
शत्रुओं के अपकर्ष-वर्णन के अतिरिक्त कुछ पद्यो मे कुमारपाल की युद्ध मे दिखायी गई वीरता तथा उनकी वीरवाहिनी आदि का वर्णन है। ऐसे वर्णन भी प्राय अतिशयोक्तियो से भरे पडे हैं । इस कोटि के कुछ पद्य द्रष्टव्य हैं - एक पद्य मे कुमारपाल के भीषण शम्य-प्रहार का वर्णन करते हुए हेमचन्द्र कहते हैं
तुह मिन कटारीफुटकटलो बब्बरा कयलतुन्दो ।
कसरी ब्व मिद्धणबड तुट्टेड कटालिसकुलाईए 11214-411 मिदनरपति 1 तुम्हारी श्वेत (चमकती) बारवाली कटारी के प्रहार से फूट हुए कपारवाला, घटोदर, अधम वलीवर्ट के समान वर्वर (असभ्य) भटकटैया से युक्त