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________________ में । स्तोत्र तो नित्य पाठ किये जाते हैं। १३ वीं शती में मणिधारी जिनचन्द्रसूरि. जिनपतिसूरि. पूर्णभद्र गणि. जिनेश्वरसूरि (द्वि० ) के स्तोत्र उपलब्ध हैं। १४ वीं शती के पूर्वार्द्ध में जिनरत्नसूरि. उ. अभयतिलक, देवमूर्ति, जिनचन्द्रसूरि (तृ.) एवं उतरार्द्ध में जिनकुरालसरि. जिनप्रमसूरि,तरुणप्रभसूरि. उ.लब्धिनिधान. जिनपद्मसूरि राजशेखराचार्य श्रादि स्तोत्रकार हुए, जिनमें जिनप्रभसूरि समस्त जैन स्तोत्रकारों में शिरोमणि हैं। कहा जाता है कि प्रतिदिन नूतन स्तोत्र बनाये बिना श्राप आहार ग्रहण नहीं करते थे. फलतः ७०० स्तोत्रों की रचना हो गई, पर अभी तो आपके ७०स्तोत्र ही उपलब्ध है । आपके रचित स्तोत्र यमक-श्लेष.चित्र. धंदादि विविध विशेषताओं से परिपूर्ण हैं । १५ वीं शताब्दि में जिनलब्धिसूरि. लोकहिताचार्य. *भुवनहिताचार्य उ.विनयप्रभ. मेरुनन्दन,जिनराजसूरि, जिनभद्रसरि. उ०जयसागर. नयकुंजर, कीर्तिरत्नसूरि आदि, १६ वीं में क्षेमराज. शिवसुन्दर. साधुसोम, गजसार आदि, १७ वीं में जिनचन्द्रसरि उ• समयराज, सूरचन्द्र. पद्मराज. उ० समयसुन्दर. उ०गुणविनय. सहजकीर्ति. श्रीवल्लभ श्रादि, एवं १८ वी में धर्मवईन, ज्ञानतिलक, लक्ष्मीवल्लभ. और १६ वीं में रामविजय. क्षमाकल्याण आदि स्तोत्रकारों के स्तोत्र उपलब्ध हैं । खरतरगच्छीय स्तोत्रों की कई सुन्दर संग्रह प्रतियें भी प्राप्त हुई हैं जिनका संग्रह प्रन्थ प्रकाशन होना परमावश्यक है। *-इनकी 'जिन स्तुतिः' संग्राम नामक दंडकमयी वाचनाचार्य पद्मराज गणिरचित वृत्ति के साथ मुनि विनयसागरजी ने 'स्वोपज्ञवृत्ति सहित-भावारिवारण पादपूर्ति-पार्श्वजिनस्तोत्रं एवं जिनस्तुतिः सटीका' में प्रकाशित करदी है। ____x-दो हमारे संग्रह में, २ बरे ज्ञान भंडार में २ जेसलमेर पंचायती ज्ञानभंडार में, १ विजयधर्मसूरि ज्ञानमन्दिर आगरे में है। जिनभद्रसूरि स्वाध्याय पुस्तिका अभी मिली नहीं, कई प्रतियें त्रुटित प्राप्त है। पाटण आदि में भी ऐसी प्रतियें अवश्य होंगी।
SR No.010721
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages51
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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