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________________ रत्नाकर में बहुत से स्तोत्रों को प्रकाशित किया. एवं अन्य फुटकर संग्रह प्र. न्थों में कई स्तोत्र प्रकाशित हुए, फिर भी स्तोत्र साहित्य * की विशालता को देखते हुए ऐसे प्रयत्न अभी ओर होते रहने आवश्यक है। मुनि-विनयसागरजी ने इस ओर ध्यान देकर एक आवश्यकता की पूर्ति करना प्रारंभ किया है. यह सराहनीय है। खरतरगच्छीय स्तोत्र साहित्य जैन स्तोत्र साहित्य की श्री वृद्धि करने में खरतरगच्छाचार्यों एवं विद्वानों की सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। १२ वीं शती से इसका प्रारंभ अभयदेवसूरिजी से होता है। देवभद्राचार्यजी के भी कई स्तोत्र प्रकाशित हैं पर जिनवालभसरिजी एवं जिनवजसूरिजी ही इस शती के उल्लेखनीय स्तोत्र रचयिता हैं। जिनवल्लभसूरिजी प्रकांड विद्वान थे, उनके विद्वतापूर्ण एवं विशाल स्तोत्रों से परवती विद्वानों को काफी प्रेरणा मिली है। आपके अधिकांश स्तोत्र प्राकृत में है । २४ तीर्थंकरों के अलग २ स्तवन रूप चौवीसी एवं पंचतीर्थी स्तव, कल्याणक स्तवन सर्वप्रथम श्रापके ही उपलब्ध हैं। उल्लासि. भावारिवारण. दुरियर स्तोत्रादि आपके विशेष प्रसिद्ध हैं. इन पर कई टीकायें भी प्राप्त हैं । जिनदत्तसूरिजी के स्तोत्र बडे चमत्कारी माने जाते हैं और सप्तस्मरणादि स्तोत्रत्रयम् , ६-७-भक्तामरपादपूर्ति काव्यसंग्रह भा. १-२।८-जन धर्म वर स्तोत्रादि ४-ऊपर केवल प्राकृत-संस्कृत स्तोत्रों की ही चर्चा की गई है। गुज राती. राजस्थानी. हिन्दी आदि में रचित स्तुति साहित्य बहुत ही विशाल है। साराभाई प्रकाशित स्तवन मंजूषा में ११५१ स्तवन और चौवीसी वीसी संग्रह. आनन्दधन. यशोविजय. शानविमलसूरि. देवचन्द्र श्रादि के स्तवन संग्रह में हजारों स्तवन प्रकाशित हैं, अप्रकाशित तो असंख्य हैं । मराठी. बंगला. पारशी. सिन्धी भाषा में भी स्तवन पाये जाते हैं।
SR No.010721
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages51
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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