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________________ एवं थे. सिबसेब बाध विकार माने जाते है । समेतमा के देवागम स्तोत्र. स्वयंभूस्तोत्र एवं जिन शतक, और सिद्धसेन की शानिशिकायें और कल्यामामंदिर बडे ही मंमीर एवं भावपूर्ण स्तोत्र हैं। देवानम एवं हात्रिशिकामों में दर्शनशास्त्र कूट कूट के भरा है। इसके पश्चात् मानतुंगसी व भक्तामरस्तोत्र, शोभनमुनि रचित स्तुति चतुर्विशतिका, धनपाल रचित ऋषभपंचाशिकादि ११वीं शताब्दि तक संख्या में कम पर महत्वपूर्ण स्तोत्र निर्मित हुए। १२-१५ वी शती से स्तोत्र साहित्य की संख्या में जोरों से अमिवृद्धि हुई, जो अब तक चालु है । लेख विस्तार के भय से यहां उनका विवेचन नहीं किया जा रहा है* । स्तुति स्तोत्र छोटे छोटे होने के कारण इनकी संग्रह प्रतियें लिखी जाने लगी. पर फुटकर पत्रों की रक्षा की ओर उदासीनता रहने प्रादि के कारण हजारों स्तोत्र नष्ट हो चुके है। फिर भी हजारों की संख्या में उपलब्ध विशिष्ट स्तोत्रों से जैन स्तोत्र साहित्य का महत्व भली भांति जाना जा सकता है। जैन स्तोत्रों का प्रकाशन कुछ वर्ष हुए यशोविजय प्रन्थमाला ने इसके प्रकाशन की ओर कुछ ध्यान दिया, और दो भागों में कई सुन्दर स्तोत्र प्रकाशित किये । मेयस्करमंडल म्हेसाणा ने भी कुछ स्तोत्र प्रकाशित किये, पर सबसे अधिक श्रेय मुनि चतुरविजयजी को है. जिनोंने 'जैन स्तोत्र संदोह' नामक बृहदाकार ग्रन्थ के २ भाग प्रकाशित किये. एवं अंत में समस्त स्तोत्रों की सूची प्रकाशित की। आपने जैन पत्र में लेखमाला भी प्रकाशित की थी। स्तोत्रों को सटीक विस्तृत विवेचन सह प्रकाशन x करने का कार्य देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फंड की भोर से प्रो. हीरालाल कापडिया ने किया। भीमसी माणेक ने भी प्रकरण *-विस्तार के लिये देखें, हीरालास कापड़िये की भामरादि स्तोत्र त्रय की प्रस्तावना. एवं शोभन चतुर्विशतिका की भूमिका x-प्रकाशित ग्रन्थ-१-२-१ शोमन, बम्पट्टि. मेरुविजय रचित स्तुति चतुर्विशतिका, ४-धमपाल कृत ऋषभ पंचाशिका. ..- मानमरादि
SR No.010721
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages51
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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