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स्तुतिकार श्रीसुन्दर प्रस्तुत " चतुर्विशति जिन-स्तुतिः" के रचयिता कवि श्रीसुन्दरगति सम्राट अकबर प्रतिबोधक खरतरगच्छाचार्य यु• श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के शिष्य हर्षविमल के शिष्य थे। हमने अपने ऐतिहासिक बैन काव्य संग्रह (पृ.१०॥
३)में इनके रचित जिनचन्द्रसूरिजी के गीतद्वय प्रकाशित किये थे,एवं अपने यु.जिनचन्द्रसूरि अन्य के पृष्ठ १७२ में आपके रचित अगडदत्त प्रबन्ध = का उमेख किया था। जैन धातु प्रतिमा लेख-संग्रह भा० २० ३२९ में प्रकाशित सं० १६६१ के मार्गशीर्ष कृष्णा ५ के लेख को प्रापन लिखा था। इसी प्रन्य के पृष्ठ १३४ में श्रीसुन्दर रचित विमलाचल स्तवन गा. ६ (सं. १६५६ माधव सुदि २ संघ सह यु• जिनचन्द्रसूरिजी की यात्रा के उस वाला) का भी निर्देश किया गया था। हमारे संग्रह में एवं बीकानेर के अन्य भंडारों में आपके अन्य कई गीत प्राप्त होते हैं जिनकी सूचि नीचेरी जा रही है
* यद्यपि स्तुति चतुर्विंशतिका में श्रीसुन्दर के गुरु का नाम नहीं पर प्रति
लेखक श्रीवल्लभ गणि १७ वीं शती के सुप्रसिद्ध खरतरगच्छीय विद्वान हैं एवं अन्य कई बातों पर विचार करने पर हमारी राय में ये हर्षविमल के शिष्य ही संभव हैं।
सुन्दर नंदी पर विचार करने पर आपकी दीक्षा सं. १६३५ के बगभग संभव है और जन्म सं० १६२५ । इनके गुरु हर्षविमलजी का नाम सं. १६२८ के पत्र में आता है। और नंदी अनुक्रम से भी उनकी दीक्षा सं. १६१७-२० के लगभग संभव है। - इसकी । पत्रों की प्रति हमारे संग्रह में है। सं० १६६६ के कार्तिक
११ शनिवार को भागवड में शाह यांपसी, पूजा, मंत्रि रडिया सुश्रावक के भाग्रह से इसकी रचना की गई है। उत्तराध्ययन सूत्र के व्य भाव जागरण के अधिकार से २६५ पद्यों में यह रचना हुई है।