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दो दिन से दो सप्ताह
डा० हर्बट टिसी, एम० ए०, डी० फिल०, श्रास्ट्रिया
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मैं अपने निश्चित कार्यक्रम के अनुसार केवल दो दिन ही ठहरने वाला था, लेकिन दो सप्ताह टहरा मैं उस सद्भुत मनुष्य का चित्र खींचना चाहता था और उस मानव का, जो महात्मा पद के उपयुक्त था, अध्ययन करना चाहता था । प्रायः एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के बारे में क्वचित् ही ऐसा कर सकता है। जैसे ही मैंने उनके प्रथम बार दर्शन किये, उनका असाधारण व्यक्तित्व मेरे हृदय को छूने लगा। उनके नेत्र स्नेहिल और तेजस्वी थे। जैसे ही उन्होंने मेरी श्रोर दृष्टिपात किया, मेरा अहम् नष्ट हो गया और मुझे उनकी महानता का अनुभव हुआ । मैं वहाँ गया तो था उनके कुछ फोटू खींचने के लिए, किन्तु जैसे ही मैंने उनको जाना, उनका परिचय पाया, फोटू खींचना तो भूल हो गया । उनके विचारों को और शब्दों को समझने लगा ।
उनके अनुयायियों व साधु-साध्वियों के लिए वे महान् प्रेरक के रूप में होने चाहिये, जो कि उनके प्रति श्रगाव श्रद्धा रखते हैं और उनके बारे में निःशंक हैं। उनका प्रभाव इतना अधिक है कि यदि वे चाहें तो वे एक बहुत ही भयंकर व्यक्ति बन सकते हैं और मनुष्यों को प्रशान्ति के कगार तक पहुँचा सकते हैं और अपना कठिनतम लक्ष्य भी प्राप्त कर सकते हैं । किन्तु उनका केवल एक ही विचार व ध्येय है जिसे कि अहिंसा-विकास कह सकते हैं ।
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पूर्ण अहिंसा पर उनकी बडा का स्पष्ट से प्रकटीकरण ही मेरे हांसी जाने का कारण बना है। इस धर्म के अनुयायी मुँह पर पट्टी बाँधते हैं जैसे डाक्टर लोग आपरेशन के समय मुंह पर 'मास्क' लगाते हैं। उसका प्रयोजन है कि उनकी आवाज से निःसुत ध्वनि तरंगों से हवा की, जो कि उनके पभिमतानुसार राजीव है, हत्या न हो। वे अन्धेरे में चलते समय भूमि का प्रमाजन कर पांव रखते हैं ताकि किसी भी जीव की हत्या न हो इसलिए मैं हांसी गया और वहाँ पर इस संघ के प्राचार्य ने मुझे समझाया।
उनका पूरा नाम है पूज्य श्री १००८ आचार्यश्री तुलसीरामजी स्वामी । आप जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के नवम प्राचार्य हैं। उनका नाम उतना ही बड़ा है, जितना कि उनका नम्रता गुण १००८' की संख्या जो दो श्री के बीच में है. वह १००८ गुणों की द्योतक है। 'तुलसीराम' उनका व्यक्तिगत नाम है और उसके पीछे जो 'जी' जुड़ा है, वह जर्मन भाषा के Chen के समान आदर का सूचक है। 'स्वामी' का अर्थ है- वह व्यक्ति जो गृहस्थ जीवन का त्याग करता है । 'जैन' एक बहुत ही प्राचीन धर्म है जो हिन्दू धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म के अधिक निकट है। श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय जैन धर्म में ही एक सुधारक प्रान्दोलन के रूप में २०० वर्ष का प्राचीन सम्प्रदाय है। मैं उनके सामने बैठ गया औौर ने मेरी मोर देखने लगे ।
वह एक प्रान्तरिक अनुभव था जो कि केवल हृदयग्राही ही था, वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं हो सकता । किन्तु यदि प्रथम अनुभव को व्यक्त न कर सका तो प्रस्तुत उपक्रम अधूरा ही रह जायेगा।
मैं जब वहाँ गया, वे एक ऊँचे तख्त पर बैठे हुए थे और दैनिक प्रवचन कर रहे थे। उनके सामने लगभग हजार प्रादमी जमीन पर बैठे हुए थे। मैं अकेला ही वहाँ विदेशी था, अतः मेरे मित्र मुझे प्राचार्यश्री के समीप ले गये । श्राचार्यश्री बोलते हुए थोड़े रुके धौर मेरा परिचय उनको दिया गया। हम प्राचार्यश्री की श्रोर देखते हुए शान्ति से बैठ गये । दुर्भाग्ययश बहुत सारे लोगों का ध्यान मेरी ओर सिंचा रहा, किन्तु कुछ समय बाद मैं यह भूल गया और मैं और प्राचार्यश्री अकेले रह गये।