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________________ श्रीकृष्ण के आश्वासन की पूर्ति श्री टी० एन० बैंकट रमण अध्यक्ष, श्री रमण प्राश्रम भारतवासी कितने सौभाग्यशाली हैं कि प्राचार्यश्री तुलसी ने जीवन के नैतिक व आध्यात्मिक अभिसिंचन के लिए देश में अणुव्रत-आन्दोलन का सूत्रपात किया है। ___ भारत वैदिक पोर उपनिषदीय गाथाभों का देश है, किन्तु उसे राजनैतिक पराधीनता से मुक्त होने के पश्चात् अब इस अणुव्रत-आन्दोलन की प्रावश्यकता है। देश ने यह स्वतन्त्रता अहिंसा के अस्त्र द्वारा प्राप्त की और इस अस्त्र का प्रयोग करने वाले महात्मा गांधी थे। गांधीजी सत्य को ही ईश्वर मानते थे और जीवन में उनका एक मात्र ध्येय सत्य की नौका खेना था और उनकी एक-मात्र इच्छा थी कि असत्य पर सत्य की जय हो। प्राध्यात्मिक परम्परामों का धनी देश को स्वतन्त्र हुए चौदह वर्ष हो गये। इस अवधि में देश का राजनैतिक एकीकरण हुमा और राष्ट्र निर्माण की बड़ी-बड़ी प्रवृत्तियां शुरू हुई। इसका प्रकट प्रमाण है-प्रौद्योगिक क्रान्ति और सामाजिक पुनर्गठन । उसमे हमारा राप्ट क्रमशः बलवान होगा और अन्य पूर्वी और पाश्चात्य देशों के साथ-साथ विश्व-कल्याण के लिए नेतृत्व कर सकेगा। पश्चिमी देश भारत के इस नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए उद्यत है । केवल इसलिए नहीं कि राष्ट्रपिता महात्मा गाधी को कीर्ति चारों ओर फैल गई है, प्रत्युत इसलिए भी कि भारत अत्यन्त प्राचीन प्राध्यात्मिक परम्परामों का धनी है। किन्तु यदि हमारे राष्ट्र को दूसरे देशों को आध्यात्मिक मूल्य सुलभ करने की आकांक्षा की पूर्ति करना हो तो उसे प्रात्मनिरीक्षण करना होगा। इस प्रात्म-निरीक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है। क्योंकि नैतिक पतन का संकट भी इस समय राष्ट्र पर मंडरा रहा है, चारित्रिक और आध्यात्मिक मूल्यों को भुला देने की बात तो दूर रही, वेदों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्रों और भगवद्गीता के होते हुए, महात्मा गांधी को महान् नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति के उठ जाने के पश्चात् भारतीय सामूहिक रूप में पतन की ओर अग्रसर हो रहे है और अपने समस्त उच्च प्रादशों को भुलाते जा रहे हैं। इसलिए अणुव्रत जैसे मान्दोलन की अत्यन्त प्रावश्यकता है। राष्ट्र को प्राचार्यश्री तुलसी और उनके संकड़ों साधु-साध्वियों के दल के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जो इस आन्दोलन को चला रहे हैं। हमें यह देखकर बड़ा सन्तोष होता है कि इस प्रान्दोलन का प्रारम्भ हुए यद्यपि दस-बारह वर्ष ही हुए है, किन्तु वह इतना शक्तिशाली हो गया है कि हमारे राष्ट्र के जीवन में एक महान् नैतिक शक्ति बन गया है। हम इस मान्दोलन को भगवान् श्रीकृष्ण के पाश्वासन की पूर्ति मानते हैं। उन्होंने भगवद्गीता के चौथे अध्याय के पाठवें श्लोक में कहा है कि धर्म की रक्षा करना उनका मुख्य कार्य है और वह स्वयं समय-समय पर नाना रूपों में अवतार धारण करते है। साधन चतुष्टय की प्राप्ति में सहयोगी हमारे देश के नवयुवक हमारे संतो और महात्माओं के जीवन चरित्रों और धर्म-शास्त्रों का अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शाश्वत सुख जैसी कोई वस्तु है और उसे इसी लोक और जीवन में प्राप्त किया जाना चाहिए। हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं-'तुम अनुभव करो अथवा नहीं, तुम प्रात्मा हो।' उसका साक्षात्कार करने में जितना बड़ा लाभ है,
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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