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अध्याय ]
माधुनिक भारत के सुकरात
हम यह समझ लें कि ईश्वर और मनुष्य दो पृथक् सिद्धान्त नहीं हैं, पूर्ण मनुष्य ही स्वयं ईश्वर होत है तो दुनिया के सभी धर्म प्रात्म-ज्ञान प्राप्त करने के भिन्न-भिन्न मार्ग प्रतीत होंगे। जब मनुष्य ईश्वर का साक्षात्कार करता है तो वह केवल अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रास्मा का ही साक्षात्कार करता है।
प्राचार्य तुलसी के सन्देश का आज के मानव के लिए यही माशय है कि वह स्वयं अपने लिए अपनी अन्तरात्मा के अन्तिम सत्य का पता लगाये। यही देवत्व का सिद्धान्त है। उन्होंने स्वयं पूर्ण दर्शन की स्थापना की है, जिसके द्वारा मनुष्य प्रात्म-शान के मन्तिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । अणुव्रत उनके व्यावहारिक दर्शन का नाम है और वह आज के अणु-युग के सर्वथा उपयुक्त है।
अणु शब्द का अर्थ होता है-छोटा और व्रत शब्द का अर्थ है-स्वयं स्वीकृत अनुशासन । जैमिनी के अनुसार व्रत एक मनो व्यापार है, बाह्य कर्म नहीं । अणु भौतिक पदार्थ का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होता है। आधुनिक विज्ञान ने यह मिद कर दिया है कि एक भौतिक प्रण में अनन्त शक्ति छिपी हुई है। त्रिसूत्री उपाय
प्राचार्य तुलसी ने इस वैज्ञानिक सत्य का मनुष्य के नैतिक और माध्यात्मिक प्रयास के क्षेत्र में प्रयोग किया है। उन्होंने यह पता लगाया है कि छोटे-से-छोटा स्वयं स्वीकृत अनुशासन मनुष्य की हीन प्रकृति को आमूल बदल सकता है। मनुष्य की प्रान्तरिक प्रकृति को परिष्कृत करने के लिए दिखाऊ त्याग करने अथवा भक्तिपूर्ण कार्यों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं होती। यह उपाय त्रिसूत्री है : १. गहरी व्याकुलता, २. असंदिग्ध संकल्प और ३. एकान्त निष्ठा ।
पहले हममें आत्म-विकास की गहरी व्याकुलता उत्पन्न होनी चाहिए। हम बाहरी वस्तुओं और वातावरण में बहुन अधिक व्यस्त रहते हैं। हमको अपनी अन्तरात्मा की नवीन विशालता को पहचानना चाहिए। फांसीसी यथार्थवादी लेखक मरतरे ने इस व्याकुलता को ही वेदना का नाम दिया है। ज्याकुलता की यह भावना इतनी तीव्र होनी चाहिए कि हर क्षण बेचनी और व्यग्रता अनुभव हो।
दूसरे प्राध्यात्मिक प्रगति के लिए स्पष्ट सुनिश्चित मंकल्प अत्यन्त आवश्यक है। इन दिनों किनारे पर रहने का फैशन चल पड़ा है। लोग कहते हैं, हम न इस तरफ हैं, न उस तरफ । राजनीति में यह उचित हो सकता है, किन्तु प्राध्यात्मिक क्षेत्र में तटस्थता का अर्थ जड़ता होता है। तटस्थता की भावना भय का चिह्न होती है। यदि हममे श्रद्धा है और यदि हम भय से प्रेरित नही है तो स्पष्ट संकल्प करना कुछ भी कठिन नहीं हो सकता।
तीसरे एकान्त निष्ठा का अर्थ है-सम्पूर्ण आत्म समर्पण की पावन क्रिया । विभक्त पारमा उम जीवन में कुछ भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। अनिश्चय हमारे समय का अभिशाप है । प्रायः सारी दुनिया में शिक्षा प्रणालियां इस आन्तरिक विघटन की बुराई का पोषण कर रही है। एमसन ने बहुत समय पूर्व इस बुराई के विरुद्ध हमें चेताया था। प्रात्म-समर्पण की भावना हमको आन्तरिक अनुशासन का जीवन बिताने में समर्थ बनायेगी।
इस शताब्दी के शान्ति-दूत
आधुनिक जीवन दिखावटी हो गया है। उसमें कोई गंभीरता, कोई सार व कोई अर्थ नहीं है। मनुष्य सम्पूर्ण आत्म-घात के किनारे पहुँच गया है। मनुष्य यदि प्राचार्य तुलसी के प्रात्मानुशासन के मार्ग का अनुसरण करे तो वह अपने को प्रात्म-नाश से बचा सकता है। अणुवत की विचारधारा मनुष्य को अपने आन्तरिक शत्रुओं से लड़ने के लिए अत्यन्त शक्तिशाली अस्त्र प्रदान करती है। अल्प अनुशासन आध्यात्मिक शक्ति का विशाल भण्डार सुलभ कर सकता है। प्राचार्य तुलसी अपने अणुव्रत के अस्त्र के साथ इस शताब्दी के शान्ति के दूत हैं । हम अणुातों का व्याकुलता, दृढ़ संकल्प और निष्ठापूर्वक पालन करके उनके देवी पथ-प्रदर्शन के अधिकारी बनें।