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आधुनिक भारत के सुकरात
महर्षि बिनोद, एम० ए०, पी-एच० डी०, न्यायरत्न, दर्शनालंकार प्रतिनिपि विश्व शान्ति प्रान्दोलन, टोकियो (जापान) सदस्य, रायल सोसाइटी माफ पार्टस्, लन्दन "तपस्या सर्वश्रेष्ठ गुण है
-पौरुविस्त (तंत्तरीय उपनिषद्, १-६) प्राचार्य तुलसी एक अर्थ में आधुनिक भारत के सुकरात हैं। वह एक पारंगत तर्कविद् हैं, किन्तु उनकी मुख्य शिक्षा यह है कि सत्य केवल वाद-विवाद का विषय नहीं, प्रत्युत प्राचार का विषय है। एक शताब्दी से अधिक की अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीय मानस को तर्कप्रधान बना दिया है। महात्मा गांधी और पं० मदनमोहन मालवीय, डा० राधाकृष्णन् ने इस बुराई का प्रकटतः बहुत कुछ निवारण किया है। प्राचार्य तुलसी ने भारत में मिथ्या तर्कवाद की बुराई को दूर करने के लिए एक नया ही मार्ग अपनाया है। उनका प्राग्रह है कि मनुष्य को नैतिक अनुशासनों का पालन करके सत्यमय और ईश्वरपरायण जीवन बिताना चाहिए। छोटा प्राकार, विशाल परिणाम
इन दिनों हम घटनामों और वस्तुओं की विशालता से प्रभावित होते हैं और उनके प्रान्तरिक महत्त्व की उपेक्षा करते है। फ्रांसीसी गणितज्ञ पोयंकर ने कहा है कि एक चींटी पहाड़ मे भी बड़ी होती है। पहाड़ की एक छोटी-सी चट्टान लाखों चींटियों को मार सकती है, किन्तु पहाड़ को यह पता नहीं चलता कि उसे स्वय को अथवा चींटियों को क्या हया। इसके विपरीत हर चींटी को पीड़ा और मृत्यु का अर्थ विदित होता है। प्राचार्य तुलसी की अणुव्रत विचारधारा नैतिक अनुशासन का महत्त्व प्रकट करती है। यह अनुशासन पाकार में छोटे होते हुए भी परिणाम की दृष्टि से बहुत विशाल है ।
अपने प्रारम्भिक जीवन में प्राचार्य तुलसी ने अत्यन्त कड़े अनुशासन का पालन किया। वे यह मानते थे कि कठोर तपस्या के द्वारा ही मनुष्य इस संसार में नया जीवन प्राप्त कर सकता है। नये जीवन का यह पुरस्कार प्रत्येक व्यक्ति अपने ही प्रयत्नो मे प्राप्त कर सकता है । नया जीवन अपने पाप नहीं मिलता। उसे प्राप्त करना होता है। प्राचार्य तुलसी के कथनानुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। भारत जैसे देश में ही प्राचार्य तुलसी जैसे महापुरुष जन्म ले सकते है । तपस्या के द्वारा नया जीवन प्राप्त करने के लिए भारतीय पूर्वजों का उदाहरण और भारतीय मांस्कृतिक सम्पदा अत्यन्त मूल्यवान् थाती है।
___ मैं प्राचार्य तुलसी मे मिला हूँ। मैंने अनभव किया कि वे ईश्वरीय पुरुष है और उन्होंने ईश्वर का सन्देश फैलाने और उसका कार्य पूरा करने के लिए ही जन्म धारण किया है। वे न भूत काल में रहते हैं, न भविष्य काल में। वे तो निस्य वर्तमान में रहते हैं। उनका सन्देश सब युगों के लिए और सारी मानव जाति के लिए है।
ईश्वर द्वारा मनुष्य की खोज
अशात काल मे मनुष्य का प्रान्तरिक विकास केवल एक सत्य के प्राधार पर हुआ है। वह सत्य है-मानव की ईश्वर की खोज। इस बात को हम बिल्कुल दूमरी तरह से भी कह सकते हैं कि ईश्वर भी मनुष्य की खोज कर रहा है ईश्वर को मनुष्य की खोज उतनी ही प्रिय है जितना कि मनुष्य ईश्वर की खोज करने के लिए उत्सुक है। एक बार यदि