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प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन प्रस्थ
नगेगी। दूसरी ओर, अगर हम प्राकृतिक नियमों के अनुसार रहने योग्य काफी अनुशासित यानी संयमपूर्ण हो जाये तो हमें सुख की खोज करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। नब वह स्वयमेव हमारे पास आयेगा । वास्तव में तो मनुष्य की सच्ची प्रकृति ही मुख है, वह उममें अवस्थित है, जिसे केवल पहचानने की आवश्यकता है।।
___सासारिक सुख का एक मयमे बड़ा खतरा, मुझे लगता है, किसी चीज से ऊब जाना । हमारे व्यग्र, भौतिक युग में अपनी आवश्यकता को पूर्ति होते ही मनुष्य उस चीज में ऊब जाता है और उससे अपेक्षाकृत बड़ी, अच्छी, तेज तया अधिक उत्तेजक चीज की प्राकाक्षा करने लगता है। अतः भौतिक इच्छाओं के विरुद्ध या उन पर विजय पाने के लिए, मन्प्य को आध्यात्मिक प्रेरणा देने वाले जीवन-दर्शन को अपनाना आवश्यक है---मुख-प्राप्ति की ऐसी जीवन-दृष्टि जिससे अन्त में निराशा पल्ले न पड़े। मुझे लगता है कि मुख के बारे में प्राचार्यश्री तुलसी की ऐसी ही जीवन दृष्टि है। प्राचार्यश्री की आँखों में देखते हुए मुझे और मेरी पत्नी को ऐसी ही झलक नजर पाई।
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